कहानीलघुकथा
"तुमने उस वीडियो के कैप्शन पर इतना बव्वाल क्यों मचाया?"
सोशल मीडिया पर वायरल हुई वीडियो के कैप्शन पर कॉमेंट पढ़ रजनीश सीधे सिद्धार्थ के इनबॉक्स में दाखिल हुआ। दोनो बेहतरीन दोस्त हैं। एक दूसरे से समय समय पर कहानी कविता लेखन पर सलाह मशविरा भी चलता रहता है दोनों का।
"रजनीश तूने देखा नही एक अच्छी खासी फैमिलियर वीडियो पर क्या बेहूदा कैप्शन लगा रखा है शेयर करने वालों ने। और किसी ने कुछ बोला भी नही।"
"सिद्धार्थ वीडियो भी तो उसी कैप्शन की वजह से वायरल हुई है।"
सिद्धार्थ ने इनबॉक्स में एक हंसी की इमोजी के साथ टेक्स्ट भेज दिया।
वह इमोजी देखकर सिद्धार्थ का खून मानो उबल आया हो।
"कैसी बकवास बात कर रहा है तू, उस कैप्शन का उस वीडियो से कुछ लेना देना नही है। कम से कम उस वीडियो की गरिमा को देखकर उसका कैप्शन लिखा जाता तो ....."
"तो उसे देखने कोई नही जाता, रजनीश ने उसके रिक्त स्थान की पूर्ति करते हुए कहा।"
"ये क्या बात हुई,"
"यही सच है, जो दिखता है वही बिकता है आजकल, सच की किसको पड़ी है। जब तक कुछ चीज़ अच्छे से लाग लपेटकर परोसी न जाये तब तक लोग उसे सीरियसली लेते ही कहाँ है भले ही उस पर झूठ की अनगिनत परत चढ़ी हो।"
अब सिद्धार्थ को अपनी लिखी वह कहानी याद आगयी। जिसे उसने किसी के जीवन से उठाकर हूबहू बिना किसी बनावटी अंत के लिख दिया था और जिस पर शायद एक लाइक भी मुश्किल से होगा।
"क्या सोच रहा है?"
"नही वो,"
अब रजनीश हँस रहा था, 'तुझे बस यही समझाना था' चल रात काफी हो गयी है, शुभ रात्रि । - नेहा शर्मा