कवितागीत
नायक-
ओ यारा SSSS......
मैं भूलना भी जो चाहूँ तुझे हरगिज़ भुला सकता नहीं
तेरी बातों को इस दिल सेकभी मिटा सकता नहीं .....
तेरी यादों के साये में जी रहा मैं यहाँ......
जानता है ये दिल तू भी होगी बैचेन वहाँ....
(कुछ सिसकियाँ..... और तभी घण्टी की आवाज़)
दोस्त-
हैलो !
मैं हूँ मुश्किल में आजा तू अब यहाँ ,
वक़्त है ज़रा कम न करना ज़ाया वहां।
चले आ .... चले आ......
(नायक यह सुन घबरा गया और दोस्त के पास पहुंच जाता है)
नायक-
है क्या ये माजरा? है कैसी ये कशमकश ?
खोलो अब राज़े दिल वक़्त की क्या है चाहत?
दोस्त -
ज़रा ठहरो! पल दो पल की है बात बताऊंगा मैं
जो समझो तो मोहब्बत की कोई छुपी कहानी है.....
(दृश्य परिवर्तन- अगली सुबह सेहरा देते हुए साथ हैं)
लो पहनों सेहरा कि महफ़िल जश्न की बुलाती है...
बेटा है बाराती और बेटी है घराती....
दुल्हन वही जो छिप-छिप तेरे ख्वाबों में आती है......
मैं दोस्त तेरा जो दिल की बात पढ़ पाया
बसाने को दुनिया तेरी बहाने से बुला लाया.....
(नायक समझ गया और नायिका से मिलन का दृश्य)
नायक- मेहरबां हुआ जो रब उसने हमें मिलाया....
जो समझा था मैं मुकद्दर अंजामे जुदाई को ...
था नासमझ जो रज़ा को ख़ुदा की न समझ पाया....
मेहरबां हुआ जो रब उसने हमें मिलाया......
डॉ यास्मीन अली।
मौलिक
हल्द्वानी उत्तराखण्ड।