कवितालयबद्ध कविता
ब्याह के लड्डू *
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अंगने में जा बैठी कन्या,
वर से मुँह को मोड़ के
जाओ मैं नहीं जाना
तुम संग रिश्ता जोड़ के ।
वर का तब जी घबराया
ब्याह पर कैसा संकट आया,
बोला ऐसे मुँह ना मोड़ो
बीच भंवर में हमें ना छोड़ो !
सर्वगुण संपन्न हूं मैं तो
चाहो तो परीक्षा ले लो,
कन्या बोली चलो बताओ
व्यंजन क्या-क्या तुम्हें पसंद हैं!?
घर की साज-सजावट कैसी
सच्चाई से हमें बताओ ,
व्यंजन की जो बात सुनी तो
वर ने मुँह में जीभ फिराया ।
मटर-पनीर हो आलू पराठा
एक-एक करके सब गिनवाया,
कन्या ने झट हांमी भर दी
एक हफ्ते में ब्याह रचाया ।
पहली रसोई के मौके पर
वधु ने वर को पास बुलाया,
बोली चलो शुरू हो जाओ
अपनी पहली रसोई आयी।
जल्दी सारे पकवान बनाओ
अपने हाथों हमे खिलाओ ,
वर को बहुत पसीना आया
दिन में तारे दिख जाते हैं ।
ब्याह के लड्डू खाने चले थे
अब घर मे खाना बनाते हैं ,
बरतन धो कर जब समय बचे तो
वधु के पांव दबाते हैं ।।
पल्लवी रानी
मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित
कल्याण, महाराष्ट्र