कविताअतुकांत कविता
रचनाकार- डा. शिव प्रसाद तिवारी "रहबर क़बीरज़ादा"
परिभाषा का भार लिए मैं घूम रहा हूँ
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मैं कवि हूँ
मेरा पता न पूँछो
मत पूँछो कहाँ रहता हूँ
मैं तो हूँ नदी
नदी की धार
सदा बहता हूँ
मैं बहता हूँ
पर्वतों के बीच घाटियों में
मैं बहता हूँ हरे भरे जंगलों में
मैं बहता हूँ हरे भरे खेतों के बीच
मैदानों में
मैं हूँ नदी का जल
जल में प्रवाह भी
मैं हूँ आज, मैं हूँ कल
मैं हूँ समय
समय का प्रभाव भी
मैं तो हूँ बूटा
बूटे का हिलना डुलना
बूटे का लहराना हूँ
मैं हूँ बूटे का पत्ता
पत्ते में हरियाली हूँ
मैं हूँ बगिया का फूल
फूल का आली हूँ
मैं आली की गुनगुन
गुनगुन में मस्ती हूँ
मैं तो हूँ फूल
फूल में सुगंध
सुगन्ध में व्यंजन हूँ
मैं हूँ फूल में रंग
रंग में रंजन हूँ
मैं तो हूँ आकाश
आकाश में शब्द हूँ
मैं तो हूँ शब्द
शब्द में अर्थ
अर्थ में भाव हूँ
मैं तो हूँ वृक्ष
वृक्ष की छाँव हूँ
मैं तो हूँ वायु
वायु में स्पर्शन हूँ
मैं बहता हूँ खेतों में
खलिहानों में
मैं रहता हूँ
मंद पवन में तूफ़ानों में
बागों में पेड़ों को
और पत्तों को छूकर मैं रहता हूँ
फूलों को और कलियों को
छूकर मैं बहता हूँ
मैं बहता हूँ
पहाड़ों से
रेगिस्तानों से
समंदर से
समंदर के किनारों से
मैं बहता हूँ
वन में वन से
तन में मन से
मैं जीवन हूँ
मैं जीवन की गति हूँ
गति का निर्माता हूँ
मुझ को कुछ जानो
कुछ मुझ को पहचानो
मेरा अभिनन्दन करो
स्वयं अभिनन्दित हो जाओगे
मेरा मंचन करो
खुशी के गीतों तुम गाओगे
मैं जल हूँ
जल में स्नेहन हूँ
मैं जल में शीत हूँ
मैं जल में रस हूँ
रस में प्रीति हूँ
मैं तो धरा हूँ
धरा की माटी हूँ
माटी में हूँ गंध
सृष्टि की थाती हूँ
मुझसे ही यह सृष्टि
सृष्टि का मैं ही आधार भी
मैं जीवन का ठाठ
वृत्ति और व्यापार भी
मैं हूँ अग्नि
मैं हूँ प्रकाश
मैं प्रकाश में भाव
मैं अंधकार में अभाव भी
मैं हूँ राहगीर की राह
राह में ठहराव भी
मैं हूँ राही की थकन
थकन में अवलंबन भी
अवलंबन में हूँ विनय
विनय में आशा हूँ
मैं तो हूँ अनुवाद स्वयं का
स्वयं की परिभाषा हूँ
परिभाषा का भार बड़ा भारी होता है
परिभाषा का भार लिए
मैं घूम रहा हूँ
जीवन का आधार लिए मैं घूम रहा हूँ
मैं कवि हूँ
मेरा पता न पूँछो
मत पूँछो कहाँ रहता हूँ
मैं तो हूँ नदी
नदी की धार
सदा बहता हूँ
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