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बीते लम्हें - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

बीते लम्हें

  • 193
  • 3 Min Read

बीते लम्हें

बीते लम्हों में बचपन को
जब भी याद करती हूँ
अश्क आँखों से बहते हैं
लबों पर मुस्कुराती हूँ

हवाएं गुनगुनाती हैं
और पत्ते सरसराते है
मेरे माथे को छूता
हाथ माँ का याद आता है

पलों में रूठकर रोकर
सखी से बात ना करना
वो फिर से सुलह करना
आज भी याद आता है

बहन के केश सुलझाना
उसे बातों में उलझाना
लोरी से सुलाना भाई को
आज फिर याद आता है

वो बुहारना आँगन
और फिर मांडना स्वस्तिक
शालिग्राम पर तुलसी
चढ़ाना याद आता है

वो अमरुद की फांके
और कच्चे बेर मुट्ठी में
चुरा कर इमली का खाना
आज भी याद आता है

माँ संग काम का करना
दबाना पैर बाबा के
फिर खुद भी सो जाना
मुझे अब याद आता है
सरला मेहता

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शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 3 years ago

बिलकुल ऐसी यादों के मायने ही अलग हैं

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

अत्यंत सुन्दर और भावपूर्ण रचना

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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प्रपोजल
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माँ
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