कवितानज़्मगजल
तिरी खुशी के लिए आंखों से आँसू बहा लिया,
हमने भी तेरे नाम का टैटू गुदा लिया।
फिरते रहे मयख़ाने के बाहर यूँ दर-बदर,
शाकी ने बुलाया तो नज़रे चुरा लिया।
हम तेरी इबादत में यूं मशगूल हो गए,
अपनो ने पुकारा तो दामन छुड़ा लिया।
बरसों से कर रखे थे कमरे में अंधेरा,
एक दीद के लिए तिरी, शम्मा जला लिया।
आदत सी हो गयी थी मुझको अकेले की,
बस तिरी एहतराम में जहां' बुला लिया।
तुमने मुझे सिखाया है जीने के मायने,
अब तक तो मायनों ने अपना घर बना लिया।
पागल मुझे कहते हैं ज़माने भर के लोग,
माथे पे फैले हाथ में सब ग़म भूला लिया।
पामाल ही तो था मैं ज़माने भर के लिए,
तिरी साथ ने आबलों को मरहम बना लिया।
फ़क़त आरज़ू है अब कि कूच कर जाऊँ,
कदम बढ़ाया, फिर तिरी याद ने पीछे बुला लिया।