कहानीप्रेरणादायक
#23अगस्त
शीर्षक- शिक्षा का महत्व
ठाकुर-"अरे काम में मन नहीं लगता तेरा! जल्दी-जल्दी हाथ चला, शाम तक पूरा न किया तो आधी ध्याड़ी ही मिलेगी । "
दीना- मालिक आपके रहम से तो चूल्हा जलता है हमारा बस कुछ समय और........
ठाकुर- ठीक है -ठीक है... और हां जाने से पहले सारा सामान गिनकर रख देना वरना......
हर दिन ठाकुर अपने मुलाज़िमों का मानसिक उत्पीडन करता
बात -बात पर शोषण, उनके सपनों को अपने जूतों तले रौंदना ठाकुर की फितरत थी । दीना के साथ कभी-कभी उसका बेटा माधव भी आ जाता था, वह पढ़ने में मेधावी था इसलिए दीना उसे पढ़ा-लिखाकर बड़ा आदमी बनाना चाहता था ताकि ठाकुर जैसे लोग उसका शोषण न करें। माधव बच्चा था तब तक वह कुछ समझ नहीं पाता था पर जैसे- जैसे बड़ा हुआ उसकी समझ में आने लगा कि ठाकुर का व्यवहार ठीक नहीं। वह सोचता मैं बापू की तरह ठाकुर जैसे लोगों के पास काम नहीं करूँगा और न ही मैं अपने बापू से काम कराऊंगा। उसका किशोर मन सपने देखता कि वह अनेकों असहाय लोगों के साथ है, शोषण के खिलाफ उसने आवाज़ उठाई और मोर्चा खोल दिया।
पिछले कुछ दिनों से दीना बीमारी के कारण काम पर न जा सका । थोड़ा से रुपये सरला ने जोड़े थे वह भी दीना के इलाज में लग गए। अब तक तो किसी तरह चूहा जल गया पर आगे के दिन बिना काम पर जाए नहीं गुजरेंगे यह सोचकर और हिम्मत कर दीना निकल गया, ठाकुर के पास पहुँच काम मांगा तो पता चला कि उसके बदले नया आदमी रख लिया है, गिड़गड़ाने पर भी ठाकुर ने उसकी एक न सुनी, आंखों में आंसू लिए खाली हाथ घर लौट आया ।
सरला उदास बैठी थी और दीना गर्दन झुकाए भाग्य को कोस रहा था । एकाएक माधव के दिमाग में बिजली कौंधी, उसने निश्चय किया कि वह कल से स्कूल के बाद कुछ बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर अपने पिता की आर्थिक सहायता करेगा, उसने दीनासे कह दिया -अब कभी बापू ठाकुर के पास जाकर नहीं गिड़गड़ाओगे ।जो पांव अब तक तुम्हें कुचलता रहा वह अब नहीं होगा । अन्याय और अनीति के खिलाफ आवाज़ उठानी ही होगी
तभी हमारी शिक्षा सफल होगी।
माधव के मन में आए ये विचार उसके शिक्षा का ही परिणाम था । और परिस्थितियों ने उसे समय से पूर्व समझदार बना दिया था ।
मौलिक/स्वरचित
डॉ यास्मीन अली
हल्द्वानी नैनीताल , उत्तराखंड।