कहानीबाल कहानी
बाल लघुकथा # शीर्षक #
मिनी ----
मिनी के पापा का तबादला महानगर में हो गया पापा मम्मी बहुत खुश हैं।
चाचू ,बुबु और खुद मिनी जरा भी नहीं ।
मिनी तो रुआंसी हो रही है।
यंहा कितने मजे से वह चाचू की पीठ की सवारी करती है।
नृत्य साधना करती हुयी बुबु के कदम के साथ ताल मिला कर ता-ता - थैया नाचा करती है ।
दादी के साथ नंगे पांव बाग की नरम घांस पर उछलती कूदती है ।
खास कर मिनी ने जब से सुना है मुझ अकेली को ही जाना है पापा- ममा के साथ ,
रो- रोकर सारे घर को सर पर उठा रक्खा है ।
किसी को नहीं समझ में आ रहा मिनी को कैसे मनाया जाए ।
इन परिस्थितियों में भी हर बार की तरह दादा जी ही संकट मोचक बन कर उभरे हैं।
अगले दिन सुबह से ही रो- रो कर थक चुकी मिनी घर की सीढियों पर मुंह फुला कर बैठी है ,
" जब बड़े मेरी बात नहीं ... फिर मैं क्यों ? " ।
तभी उसे दादा जी दूर से आते दिखे ।
" ओ... उनके हांथ में तो ब...ड़ा सा काठ का बक्सा भी है "
मन किया भाग कर देख आए आखिर क्या हो सकता है इसमें ?
" उंह नहीं... मैं क्यों जाऊं... उन्होंने मेरी बात मानी क्या ? "
उसने अपनी आंखे भी बन्द कर लीं ।
अब तो उनकी तरफ देखूंगी भी नहीं !
तभी कदमों की आहट नजदीक आती सुन कनखियों से देख कर और भी कस कर मूंद ली पलकें ।
" ये तो मेरे बिल्कुल पास आ गए ... ओह बक्से में से कितनी प्यारी कूं - कूं की आवाज आ रही है ।
तभी दादा जी ने हाँथ में थामें बक्से को रुठी मिनी की गोद में डाल दिया और ताली बजाने लगे ।
अन्दर से दादी ,चाचू, बुबु सब निकल ताली बजा कर हंसने लगे ।
मिनी भी अब काबू नहीं रख पा रही है , क्या करे ?
धीरे से जो पलके झपकाई तो आंखे बन्द करना ही भूल गयी
ओ वा...ओ ये तो उसकी मनपसंद सौगात दादा जी ने ला दी है ।
भूरे और काले डौगी के नन्हे- नन्हें दो बच्चे उफ्फ्फ पिछले कितने दिनों से वह इसके लिए जिद करती आई है ।
उसे डौगियों से कितना प्यार है खुद दादा जी भी तो कहते हैं , " पशु - पक्षी हमारे जैसे ही होते हैं हमेँ उनसे प्यार करना चाहिए "
आज दादा जी ने अपनी बात पूरी कर दी ।
वह डब्बे को एक तरफ रख उनके गले पकड़ जोरों से रो पड़ी ,
" मेरे अच्छे प्यारे दादा जी... मैं इन्हें खूब प्यार से रखूंगी सच में मेरे दोस्तो से ही निराले मेरे अकेले पन के साथी हैं "
हां इस बार आंसू खुशी के हैं ।
स्वरचित / सीमा वर्मा
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