कविताअतुकांत कविताबाल कविता
एक छोटी कविता जो मैने उस समय लिखी जब एक छोटा सा चूजां (गौरैया का बच्चा) के जोर से चलने पर अपने घोसले से बाहर गिर पड़ा, बहुत ही मासूम उसके पंख में चोट आ गयी ।उसकी माँ उसके सलामत के लिए इधर उधर से कुछ दाने व कीड़े मकोड़े लाती व उसके मुंह में डालती।अपना प्रेमियों मन रहा न गया उसको उठा के कुछ मरहम पट्टी किया उसके पास दिये में पानी रखा व उसकी तीमारदारी करने लगी धीरे-धीरे वह बच्चा स्वस्थ होने लगा उसके पंख हृष्ट-पुष्ट होने लगे एक दिन वह अपनी माँ के साथ अन्यत्र कहीं चला गया। एक दो बार उसके घर के चक्कर लगाये पर अपने पंखों से उसने एक उँची उड़ान भरी व वापस न आया। मेरे मन के कोने में कुछ पंक्तियाँ उभर गयी ।
खेले खेल हवा से डाली
पूरब से हवा मतवाली
करती है देखो रोर।
इस शोर में नीचे आया
चूजां नंदकिशोर।
आंख अभी अधखुली सी
छोटे छोटे पंख
छोटा सा वो प्यारा सा
दो धारियाँ लिए संग
मुंह उसके छोटे से नाजुक
लाल लाल है ओठों
गिरा जब वह फलक से
लग गया उसको चोट।
लालायित निगाहें उसकी
ढूंढ रही थी ओट।
सहसा पाकर वात्सल्य जागा
सोचा कैसे गिरा अभागा।
मन में एक विश्वास जागा
उसको उठा लिया झट गोद
पाती का एक घर बनाया
उसमें मैने उसको ठहराया।
एक दिन में वह चंचल सा
काम करने लगा कुछ हलचल सा
मन में एक साहस सा जागा
बच गया शायद यह बड़ भागा।
तभी एक चिडिया भी आयी
अपने साथ चिड़े को भी लायी
माँ बाप थे दोनों उसके
जो था नौनिहाल।
पाकर अपने छोटे रतन को
दोनों हो गये निहाल।