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इसलिए दुःखी हूँ - संदीप शिखर (Sahitya Arpan)

कवितागजल

इसलिए दुःखी हूँ

  • 175
  • 4 Min Read

तुझे कभी देख ना पाया,बस इसलिए दुखी हूँ
ख्वाब ना सिरहाने आया,बस इसलिए दुखी हूँ

ठहरी थी नींद पलको पर,एक गुजरे जमाने से
जाने से उसे रोक ना पाया,बस इसलिए दुखी हूँ

वक्त सबकुछ सिखाता है,मगर सिर्फ वक्त आने पर
कभी वो वक्त ही नही आया,बस इसलिए दुखी हूँ

जिस किसी से दिली रिश्ते,हम बनाते रहे हरदम
हमे हर उसी ने आजमाया,बस इसलिए दुखी हूँ

खुद को खोकर कितना,खुश हो रहा था पहले
मैं फिर मुझमे लौट आया,बस इसलिए दुखी हूँ

जमीर बेचकर निवाले तो,कमाये बहुत लेकिन
मुझमे मर गया मेरा साया,बस इसलिए दुखी हूँ

एक दूसरे के काम आना,सीखा दस्तूरे जिंदगी है
मैं खुद के ही ना काम आया,बस इसलिए दुखी हूँ

स्वरचित-संदीप शिखर मिश्रा© वाराणसी(U. P)

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 4 years ago

बहुत सुंदर

प्रपोजल
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वो चांद आज आना
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