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हास्य रस - पं. संजीव शुक्ल 'सचिन' (Sahitya Arpan)

कविताछंद

हास्य रस

  • 271
  • 5 Min Read

रस का नाम :- हास्य रस
विधा:- मत्तगयंद सवैया
मापनी:- 211 211 211 211 211 211 211 22
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रचना
( ०१ )
बासन माज रहे सजना सजनी चलचित्र न देख अघाती।
वासन धोकर हाथ दुखे सर हाथ रखे बलमा दिन-राती।
कौन कसूर हुआ हमसे यह सोच रहा फटती निज छाती।
ब्याह किया खुश था कितना पर आज जलूं जस दीपक बाती।।

( ०२ )
कूट रही सजनी हमको कह वक्त पड़े दिखते कब स्वामी।
भृंग बने फिरते रहते तुम देख कली लुभते खलकामी।
श्वान समान विचार भरे मन ढ़ूंढ रहा कलियां अभिगामी।
पंथ - कुपंथ गहे हरबार कहे खुद को खुद अंतरजामी।।

( ०३ )
नाचत गावत बर्तन मांजत है कटता अब काल हमारा।
जान जिन्हें कहता रहता वह नोच रही सर बाल हमारा।
देख लिया पर नार कही तब लाल हुआ अजि गाल हमारा।
कौन सुने मम पीर जिआ इस जीवन में बन ढाल हमारा।।
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घोषणा :- मेरी यह रचना स्वरचित है।
(पं.संजीव शुक्ल 'सचिन')
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Comrade Pandit

Comrade Pandit 3 years ago

वाहहह कमाल कर दिया 🤪🤪🤗🤗8

पं. संजीव शुक्ल 'सचिन'3 years ago

सादर आभार वंदन आदरणीय श्री

प्रपोजल
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