कविताअतुकांत कविता
यह फूल
उपवन से तोड़कर
गुलदस्ते में सजाकर
तुमने क्यों रख दिये
ऐ मेरे दोस्त
दर्द से गुजरे होंगे जो
पेड़ की टहनी से टूटे
होंगे
जरा इनके दिल पर
हाथ रख दूं
जाते जाते कुछ कह रहे होंगे
फूल तो सजे हैं
मेरे भी केशों में
लेकिन वह असली नहीं
नकली हैं
मेरा काम तो
चल जाता है
इंसान के द्वारा बनाई
चीजों से
प्रकृति द्वारा प्रदत्त कुदरत के
उपहारों को मैं
बिना बात ही क्यों तोडूं
क्यों फूलों की बहारों से लदे गुलिस्तां को उजाडूं
ऐसी बदसलूकी गर हम
करते रहे तो
वह दिन दूर नहीं जब
प्रकृति का सम्पूर्ण विनाश हो
जायेगा
चारों तरफ फिर
नकली फूल ही
होंगे
असली फूलों के दीदार को तो
इंसान के दिल की आंख का कोना कोना
तरस जायेगा।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) - 202001