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मासूम बचपन - Meeta Joshi (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

मासूम बचपन

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  • 6 Min Read

सात-साल का वैभव,अपनी माँ की रंगहीन ज़िंदगी देख,मन ही मन घुटता रहता था।कभी ताई की साड़ी,तो कभी दादी की बिंदी ला माँ से पहनने की जिद्द करता।शब्द कम थे,पर उसकी तकलीफ,उसकी हरकतों से महसूस होती।पिता को गुजरे,दो साल हो चुके थे।इन दो सालों में वैभव खुदको बहुत बड़ा समझने लगा था।आज होली है।सबको रंगों से खेलता देख अपनी माँ की तकलीफ को महसूस कर पा रहा था।उलझनों में उलझा हुआ वैभव अचानक माँ के पास गया और उसके माथे पर कुमकुम का लाल-तिलक लगा,सारा रंग सफेद साड़ी में बिखेर,उसे रंगीन कर गया।उसकी इस हरकत पर सबने उसे बहुत डाँटा।उसने देखा माँ भी रोने लगी तो बोला,"मैं हूँ ना माँ।मेरी खुशी के खातिर ये सब करो।तुम्हीं तो कहती हो,"बिल्कुल अपने पापा जैसा है।उन्हीं का रूप।तो फिर तुम दुःखी क्यों रहती हो।क्या पापा होते तो उन्हें अच्छा लगता तुम्हें ऐसे देखना!"उसके मासूम मन की गहरी भावना के पीछे छुपे मकसद को जान,सब चुप थे।माँ ने बेटे के मन में छुपे गहरे दर्द को जान उसे सीने से लगा लिया और हंसते हुए उसके आँसू पौंछ लाल रंग उसके ऊपर डाल,सहलाते हुए कहा,"होली मुबारक हो वैभव।"माँ का हँसता चेहरा देख वैभव खुश था।बच्चे की भावना ने आज माँ के मन को होली के रंगों की तरह रंगीन कर दिया।
©मीताजोशी

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Bina Chaturvedi

Bina Chaturvedi 3 years ago

बहुत ही खूबसूरत रचना👌❤️

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत सुंदर अनगिनत भावना लिए रचना। वाकई खुशियों पर सभी का अधिकार है।

Girish Upreti

Girish Upreti 3 years ago

एक बच्चे की भावनाओं और उसके द्वारा लिए गए निर्णय का मार्मिक चित्रण।

Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

बढ़िया। पूर्णविराम के बाद स्पेस दे कर अगला वाक्य शुरू करें

Meeta Joshi3 years ago

जी अंकिता जी।सलाह के लिए धन्यवाद।आगे से ध्यान रखूँगी।असल में 100 शब्द व 75 words की stories में comma और पूर्णविराम से चिपके शब्द अलग से counting में नहीं आते वहीं से ये आदत पड़ गई है।अबसे ध्यान रखूँगी।

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