Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
उत्सव - Anujeet Iqbal (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

उत्सव

  • 180
  • 5 Min Read

उत्सव

अज्ञात के जिस अंतहीन विस्तार में
तुम्हारा निवास है
मुझे वहां आना होगा
और करवाना होगा स्नान स्वयं को
तुम्हारे स्फटिकप्रभ जलाशयों में
"निर्वापण" के लिए

एकनिष्ठ दृष्टि से अवलोकन करना होगा
तुम्हारे अंगुष्ठ से निकलती
कलकल करती मदमस्त नदियों का
और उन में प्रवाहित करने होंगे
वो सब अवयव
जो बुद्धि और ज्ञान के
क्षेत्र में आते हैं

प्राण, चेतना, पंच वायु, सप्त कोशों के
विभिन्न रंगों को घोल देना होगा
तुम्हारे प्रेम की सौम्य एवं चैतन्य धारा में
और हो जाना होगा पारद की तरह श्वेत

तुम्हारी शून्य सभा में
सदैव चलता रहता है रंगोत्सव
जिस में आमंत्रित होती हैं
मेरे से पूर्ववर्ती और समसामयिक
अज्ञातनाम प्रेमिकाएं
जो बहती हैं धारा के साथ
बिना निषेध के, राजी होकर
और तुम करुणा की पराकाष्ठा में
शांत कर देते हो
युगों की महातृष्णा को
एक ही पल में
अपने प्रेमालिंगन में लेकर

प्रिय, यही तो हमारा नित्य उत्सव है


अनुजीत इकबाल
लखनऊ

IMG_20210320_001225_1617006803.jpg
user-image
नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बेहतरीन 👌🏻

Anujeet Iqbal3 years ago

धन्यवाद नेहा जी

वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
तन्हाई
logo.jpeg
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg