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छलिया - Arvina Gahlot (Sahitya Arpan)

कवितागीत

छलिया

  • 176
  • 3 Min Read

ओ छलिया ओ छलिया

प्रतीत डोर तोड़ गई तुम
मुझको हाय छल गई तुम
दुनियां की भीड़ में खो गई तुम
तुम मुझे याद बहुत आओगी

ओ छलिया ओ छलिया
बन के प्रियतमा लुभाया मुझे
रोज रोज बातों में उलझाया मुझे
बंदा मैं था सीधा सादा
प्रेम रोग मुझको लगाया ही क्यों

ओ छलिया ओ छलिया

फूल गुलाब भेंट किया मैंने
निर्दयी तुमने कांटों को मेरे लिए छोड़ दिया
नये सफर पर चल पड़ी तुम
हाय मुड़ कर एक बार ना देखा मुझे

ओ छलिया ओ छलिया
मेरी जिंदगी में अब उड़ती है धूल
तेरी बातें सब चुभती है बनकर शूल
तुम चली गई गुबार रह गया

ओ छलिया ओ छलिया

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Poonam Bagadia

Poonam Bagadia 3 years ago

वाह..! बहुत बढ़िया...👌👌

Arvina Gahlot3 years ago

हार्दिक धन्यवाद

पं. संजीव शुक्ल 'सचिन'

पं. संजीव शुक्ल 'सचिन' 3 years ago

बहुत सुंदर

Arvina Gahlot3 years ago

हार्दिक धन्यवाद 🌷

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