कवितालयबद्ध कविता
ज़िन्दगी के सफर में साथ चल रहे थे दोनो ...
अपनी जिम्मेदारियों को निभा रहे थे दोनो ...
एक तेरा साथ ही था मेरे लिए बंदगी ...
फिर भी न जाने क्यों खामोश थी ये ज़िन्दगी ...
*मैं भी मौन तू भी मौन , लफ्जो की खामोशी समझे कौन ...*
लगता है छोटी छोटी बातों से ही दिल लगा बैठे है ...
सफर में साथ देने वाले अब रास्ता बदल बैठे है ...
न जाने क्यों मन उदास और परेशान है ज़िन्दगी ...
दो दिलों की इस चुप्पी को अब समझेगा कौन ...
*मैं भी मौन तू भी मौन , लफ्जो की खामोशी समझे कौन ...*
पहले तो बिन कहे हर बात समझ जाते थे ...
एक दूजे के दिल के हर जज्बात समझ जाते थे ...
अब सिर्फ हर बात का बस बतंगड़ बनता है ...
बिना किसी बात पे जुबानी जंग से पहाड़ टूटता है ...
*मैं भी मौन तू भी मौन , लफ्जो की खामोशी समझे कौन ...*
पहले तुम्हारी खामोशी शोर करती थी मेरे कानों में ...
और ना ही अनजान थे तुम मेरी मूक अल्फाजों से ...
अब तो जैसे जन्मों से कान तेरे एक लफ्ज़ को तरसे है ...
खामोश दिल पे अंगारे अब तो शोले जैसे बरसे है ...
*मैं भी मौन तू भी मौन , लफ्जो की खामोशी समझे कौन ...*
न जाने अब क्यों सब कुछ बदला बदला सा लगता है ...
प्यार का हर लम्हा हमारा बिखरा बिखरा सा लगता है ...
हर दर्द में खामोशियो को पढ़ लिया करते थे ...
तेरे एक आहह के लिए हम जान देने की बात करते थे ...
*मैं भी मौन तू भी मौन , लफ्जो की खामोशी समझे कौन ...*
अब सारी बातें दिल ही दिल मे दफन हो जाती है ...
न किसी ने कहना चाहा न किसी को सुनने की आरज़ू ...
समझ जाते है हम सब कुछ हक किसी तरह जताते है ...
बस प्यार के झूठे दिखावे से रिश्ते को जलाते है ...
*मैं भी मौन तू भी मौन , लफ्जो की खामोशी समझे कौन ...*
ममता गुप्ता✍️