Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
क्या फर्क पढ़ता है - संदीप शिखर (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

क्या फर्क पढ़ता है

  • 170
  • 3 Min Read

किसी गैर की पनाहों में,देखता खुद की मुहब्बत को
खुद को हरदम समझता हूँ, खैर क्या फर्क पड़ता है

अजनबी हाथों में जब भी,देखता खुद की अमानत को
सोचकर मन को बहलाता हूँ, खैर क्या फर्क पड़ता है

बड़ी शिद्दत से जिसको चाहा,जिसकी इश्के इबादत की
देख उसे ही अब दूर जाता हूँ,खैर क्या फर्क पड़ता है

हर हकीकत सामने है मेरे,वो अब कभी मेरी नही होगी
फिर भी खुद को झुठलाता हूँ, खैर क्या फर्क पड़ता है

जी रहा बस जिंदा लाश बनकर,मैं उनकी याद में तन्हा
बस खुद को यादो में जलाता हूँ, खैर क्या फर्क पड़ता है

logo.jpeg
user-image
नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 4 years ago

बहुत खूब

संदीप शिखर4 years ago

धन्यवाद आपका

प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
दादी की परी
IMG_20191211_201333_1597932915.JPG
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg
चालाकचतुर बावलागेला आदमी
1663984935016_1738474951.jpg