कवितागीत
गुनगुनाती है तेरी आवाज प्रियवर हो,
चहचहाती है तेरी आवाज़ प्रियवर हो,
कुछ तुम कहो,
कुछ हम कहें,
हमराज प्रियवर हो,
दिल की बात हो नईया पार,
जज़्बात खास प्रियवर हो,
धड़क उठे,
कभी फड़क उठे,
जब बजे दिल के तार प्रियवर हो,
जब हो अबोध,
ये प्रेमरोग,
बनकर वियोग रहता है,
सुनो दिल की बात,
न सुने जिसे कायनात,
वो तुमसे कुछ कहता है,
प्रियवर हो..!
रहेंगे साथ,
न आर-पार,
सुने दिल पुकार,
हे प्रियवर हो...
-गौरव शुक्ला'अतुल'