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किसान की माँ - 1 - Sushma Tiwari (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिकप्रेरणादायक

किसान की माँ - 1

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खटिया से उठ कर रामाधीन खांसने लगा था। पत्नी सुकुमारी दौड़ कर लोटे में पानी दे गई। रामाधीन की काया भी उनकी माली हालत जैसे पतली हो चली थी। कभी ऐसा शरीर था कि बैलों के बजाय हल खुद ही जोत लेता था। पैरों में चप्पल डाल धीरे धीरे घर से बाहर जाने के लिए कदम बढ़ाने लगा।
" बापू! कहा जा रहे हो, खाना खा लो पहले .. वैसे भी धूप बहुत तेज है..गर्मी लग जाएगी, अम्मा! तुम समझाती काहे नहीं हो?"
बड़ी बिटिया राधा चूल्हे में और लकड़ियां डालती हुई बोली।
रामाधीन ने एक नजर बिटिया पर डाली। गरीबी और तंगी ने उसे उम्र से पहले ही सयाना बना दिया था। ना तो उसकी पढ़ाई पूरी करवा पाया और ना ही अब शादी का जुगाड़ कर पा रहा था ।यही अफसोस अंदर ही अंदर खाए जा रहा था।
" बबलू जा साथ हो ले बापू के.. ये तो मानने वाले नहीं हैं। जाने रोज इनके जाने से बरसात हो जाएगी क्या? सबके खेत सूखे है, ये अकेले जाने कौन सी अग्नि में जले जा रहे है " सुकुमारी की बाते अब रामाधीन को कम चुभती थी। सुकून था कि शिकायत तो करती है। कहते है जहां शिकायतें होती है समझो वहाँ उम्मीद अभी बाकी है। रामाधीन कैसे बताये सुकुमारी को की भले सूखा सबके खेत पर कब्जा किए हुए है पर बंजर रामाधीन का हृदय हो चला था। जब वो छोटा था तो अपने बाबुजी के साथ दिन भर खेतों में लोटे रहता। पकी धान की बालियां तोड़ लाता और उन्हें भून कर खाता था। बाबूजी बालियों को बच्चे जैसे सहलाते थे। रामाधीन की माँ उसे बहुत छुटपन में छोड़ गई थी। जवानी की दहलीज पर आते ही बाबूजी दूसरे लोक जाने को तैयार खड़े थे। वो जब जाने लगे थे तो रामाधीन को बुला कर कहा था कि मैं तुम्हें जो जमीन देकर जा रहा हूं उसे ही अपनी माँ समझना। हमेशा ख्याल रखना उसका। रामाधीन ने वही किया भी। शरीर को शरीर ना समझा कभी खूब मेहनत की और जमीन को सोना उपजाने पर मजबूर भी किया। खाली समय में रामाधीन खेतों में बैठ कर धान की बालियों को निहारता और उनसे बात भी करता था। सुकुमारी मज़ाक मज़ाक में खेतों की ओर चिल्ला कर कहती भी थी " अरी ओ सासु माँ sss.. अपने बिटवा से कहो जरा पत्नी को भी समय दे दे "। दोनों खूब हँसते थे फिर। राधा और बबलू के आने के बाद सुकुमारी अब गृहस्थी में ज्यादा व्यस्त रहती थी।
समय के साथ मौसम की मार भी बढ़ते चली थी। कभी बे मौसम बारिश हो जाती तो कभी खड़ी फसल पानी के इंतज़ार में सूख जाती थी।उसने बैंकों से कर्ज लेकर भी कई बार सिंचाई की थी, कई बार सुकुमारी के गहने भी बेचने पड़े थे। सुकुमारी खिसिया जाती थी कि जितने का बाबू नहीं उससे मंहगा झुनझुना हो जा रहा है। उपज हो नहीं रही और तुम हो कि डाले जा रहे हो सारी संपति खेतों में। इससे अच्छा शहर जाकर कुछ मजदूरी कर लेंगे। पर रामाधीन कहाँ मानने वाला था। उसके लिए वह को खेत का टुकड़ा होता तो कोई बात होती.. उसके लिए तो वह उसकी माँ है। बीमार माँ की सेवा में सर्वस्व झोंकने का दम हर सन्तान रखती है।
रामाधीन के खेत सड़क से लगे हुए थे। फिर एक दिन खबर आई कि वहाँ पास से ही राजमार्ग निकलने वाला है। अब सरकारी लोगों की साठ गांठ से कुछ निजी कंपनियों की नजर किसान के खेतों पर थी। वो चाहते थे कि वहाँ होटल और बिल्डिंग बनाई जाए ताकि अच्छी कमाई हो सके। मौसमी मार से त्रस्त कई किसानो ने ये सौदा मंजूर भी कर लिया था। रामाधीन को लगता था कि जानबूझ कर सरकार सिंचाई के लिए कोई मदद उपलब्ध नहीं करा रही है ताकि मजबूरन खेतों को उनके हवाले करना पड़े। वह एक अच्छी कीमत भी देने को तैयार थे पर रामाधीन सुनते ही तमतमा गया था। माँ का सौदा कोई कैसे कर सकता है भला?

क्रमशः

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Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 4 years ago

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