कहानीसामाजिकलघुकथा
टिंग-टोंग....टिंग-टोंग
अपर्णा ने जैसे ही दरवाजा खोला पुलिस को देख सहम गई। चंद मिनटों में जितने बुरे विचार आ सकते थे, सोच दिल बैठ गया।हिम्मत कर बोली,"जी कहिए? किससे मिलना है आपको!"
"अपर्णा जी हैं?"
"जी मैं ही अपर्णा हूँ।"
"मैम हम पुलिस थाने से आए हैं।उर्मि उपाध्याय आपकी मित्र हैं।"
"जी हाँ!क्या हुआ उसे..."
"वो 'सिटी हॉस्पिटल' में नाजुक हालत में हैं।आपसे मिलने की इच्छा जाहिर की है।आपको साथ चलना होगा।"
अपर्णा बेसुध सी उनके साथ हो ली।
हॉस्पिटल जा देखा तो उर्मि को पहचानना मुश्किल था।अपर्णा को देख आँसू छलका दिए।
अपर्णा ने उसके हाथ पर हाथ रख कहा,"ये सब क्या हुआ उर्मि!"
"जी इन्होंने सुसाइड की कोशिश की है।80%तक जल चुकी हैं और कबूल भी कर रही हैं।"पुलिसवाले ने बताया
अपर्णा ने कहा,"मैं अकेले में मिलना चाहती हूँ।"
उन्हें अकेला छोड़ दिया गया।उर्मि का सीधा हाथ और मुँह पहचान आ रहा था बाकी बॉडी कवर की हुई थी।
"ये सब किसने किया और इतनी पीड़ा इतनी प्रताड़ना के बाद भी तू सब इल्जाम अपने ऊपर ले रही है।सच बता? मैं हूँ तेरे साथ तुझे न्याय दिला कर रहूँगी।"अपर्णा बोली।
जैसे ही सहेली के मुँह से सांत्वना के शब्द सुने वो बुरी तरह रोने लगी,"मुझे बचा लो अपर्णा!मैं मरना नहीं चाहती!मेरे बाद मेरी बच्ची का क्या होगा?वो दंरिदे तो लड़की नाम से चिढ़ते है और मेरे पति... गलत तो नहीं पर कभी उन्होंने मेरे लिए आवाज़ नहीं उठाई।"
अपर्णा ने चिल्लाकर कहा,"क्यों सहती रही उनके अत्याचार,और आज उस फूल सी बच्ची का न सोच ये कदम....!"
उर्मि रोते हुए बोली,"वो लोग शादी के बाद से आए दिन दहेज की माँग को ले मुझे शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना देते रहे।जितना कर सकते थे पिताजी ने मेरी मदद की पर इनका लालच कम न हुआ ।कमाई न होने की वजह से पति मूक दर्शक बने रहे।मैं दहेज की बार- बार मांँग से आहत हो चुकी थी।पता चला पापा को कैंसर है वो इलाज का पैसा देते या कभी न बंद होने वाले इन दहेज लोलुप भेड़ियों की अग्नि शांत करते।चार साल से हर मांग पूरी करते-करते भी वो इनका मुँह बन्द न कर पाए।पापा की तकलीफ को देखते हुए मैंने तो बस इन लोगों को डराने के लिए अपने ऊपर केरोसिन डाला था।मुझे नहीं पता था मैं हादसे की शिकार हो जाऊँगी।मुझे बचा लो,मैं जीना चाहती हूँ, मैं मरना नहीं चाहती।"और कह बार-बार बेसुध सी पड़ जाती।उसकी हालत गंभीर थी।
अपर्णा ने कहा,"तुम्हारी बुजदिली पर तरस न आ शर्म आती है।पढ़ी-लिखी होकर भी तुमने दरिंदों को इतनी आसानी से माफ कर दिया और खुदका ये हश्र बोलो मुझसे क्या चाहती हो?"
उर्मि ने रोते हुए अपने पति को बुलाया और बिटिया को अपर्णा की गोद में देते हुए कहा,"आज से इसे मातृत्व सुख तुम दोगी।जिसका पिता इसकी माँ का साथ न दे पाया वो इस बच्ची के लिए क्या करेगा।इनके गुनाहों की सजा यही है कि पिता होते हुए भी संतान सुख से वंचित रहें।बेशक वो गलत नहीं थे पर चुप-चाप सब जानते हुए सहने वाला भी गुनहगार होता है।मुझे सिर्फ तुम पर विश्वास है अपर्णा।मेरी बेटी को अपनाओगी ना?तुम हाँ कह दो तो मैं चैन की नींद ले पाऊँगी।"
अपर्णा ने कहा," ठीक है पर तुम्हें एक वादा करना होगा।जिन दरिदों ने तुम्हें इस हालत में पहुँचाया है तुम्हें उन लोगों के खिलाफ गवाही देनी होगी।सोचो आज वो बच गए तो न जाने अगली उर्मि कौन होगी?"
उर्मि ने जाने से पहले ससुराल वालों के खिलाफ गवाही दी।समाज के लोगों ने भी उनकी असलियत जान उनका बहिष्कार किया।उन्हें आजीवन कारावास की सजा मिली लेकिन तब तक उर्मि जा चुकी थी।
आज बिटिया इक्कीस साल की हो चुकी है।उर्मि की तस्वीर के पास जा अपर्णा ने सारा किस्सा बच्ची को बताया।साथ ही बोली तुम्हारी माँ तुम्हारे पिता को बहुत प्यार करती थी आज वो आने वाले है।
शाम को जब उसने अपने पिता को देखा तो उनके चेहरे में अपना चेहरा देख आँखों से आँसू छलक पड़े।अपर्णा की पीड़ा देखने लायक थी उसे लगा बिटिया चली गई तो.... ?
बिटिया ने पिता के पांव छुए और अपर्णा का हाथ पकड़ कहा, "आज मुझे अपनी माँ के फैसले पर गर्व है जो उन्होंने मुझे आपके मजबूत कंधो का सहारा दिया।मुझे अपने पिताजी से कोई नफरत या नराजगी नहीं हो रही तरस आ रहा है इनके ऊपर।मेरी माँ की मौत का तमाशा देखने वाले इंसान को माफ करने का मैं सोच भी नहीं सकती।
©मीताजोशी
Speechless 😍👌👌👏👏 awesome story
Thank you so much❤️
मार्मिक चित्रण व अपर्णा जी का मजबूत व्यक्तित्व👌👏
Thanks🙏