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माँ की ममता - Meeta Joshi (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

माँ की ममता

  • 724
  • 13 Min Read

ऑफिस पहुँच विपिन को माँ का भाग कर कोट लेकर आना रह-रहकर याद आ रहा था।माँ आज भी वही थी।वही प्यार वैसी ही चिंता।आज भी मेरी तकलीफ से उसकी आह निकल जाए।सालों बाद उसके साथ हूँ।वो इतने सालों में मेरे लिए दूसरी हो गई क्योंकि आज पहला स्थान वसुधा ने ले लिया था पर..माँ! उसके लिए मैं आज भी वही बिट्टू हूँ।
वसुधा को कभी उनका रहन-सहन,स्टैंडर्ड पसंद नहीं था।बात-बात पर उनको ले,उसका मेरा झगड़ा होता।तब माँ कितनी समझदारी से बोली थी,"बेटा अपना ट्रांसफर कहीं और करवा ले।मैं नहीं चाहती हूँ कि हमारी वजह से तुम दोनों के जीवन में कलह हो।अब तुझे अपनी गृहस्थी का सोचना होगा।"
....और मैं दूर चला आया फिर कभी वापिस मुड़ कर नहीं देखा।कभी-कभी मिलने चला जाता था।माँ ने देखा वसुधा खुश है तो कभी अपनी पीड़ा भी नहीं बताई।आज सालों बाद पिताजी के चले जाने के बाद माँ साथ आई है।छोटा घर है इसलिए बाहर एक गेस्ट-रूम में माँ का सामान रखा है।अब वो मेहमान नहीं है अपनी बाकी ज़िन्दगी या कहूँ की अंतिम सांस तक साथ रहने वाली है।
वसुधा से कोई उम्मीद नहीं।उसने पहले ही कभी नहीं किया तो अब क्या करेगी।दुविधा में हूँ वो दोनों थोड़ी देर भी साथ नहीं बैठ सकतीं और मैं....कशमकश में हूँ ।
आज ऑफिस के लिए निकला तो वसुधा ने नया स्वेटर बुना था वो पहना दिया जैसे ही जाने को निकला माँ दौड़ी चली आई,"बेटा,ठंड बहुत है एक स्वेटर से कुछ न होगा कोट पहन लें।"पीछे वसुधा खड़ी थी और मैं फिर कशमकश में....
"माँ पहन रखा है।आजकल ये कोट नहीं चलते।"बार-बार समझाने पर भी जब नहीं मानी तो गुस्से से पलट कर डांट दिया।मेरी शक्ल देख वो मायूस हो गई।कभी छोटा था तो ऐसे ही पीछे भाग जबरदस्ती कोट पहना जाती।तब सिर्फ माँ थी और मैं उसका लाड़ला बिट्टू।
ऐसा नहीं कि मैंने सामंजस्य बैठाने की कोशिश न कि हो सब हथकंडे अपनाए पर सब व्यर्थ।माँ ने सौगंध दी थी,"अपना परिवार सुख-शान्ति से बसाएगा नहीं तो हम खुदको कभी माफ नहीं कर पाएँगे।"
मैं कुछ न कर पाया।आज भी....वो माँ है जानता हूँ माफ कर देंगी।सालों से मेरी गलतियों को अपने प्यार की मरहम लगा ऐसे ही मेरे घावों को भरती आई है।
आदमी कितना लाचार हो जाता है जब दो जनों के बीच पिस जाए।स्थिति तब और कठिन हो जाती है जब वो दोनों अपने इतने अज़ीज़ हों।जनता हूँ दोनों में विचारों का व समय का अंतर है पर मेरे लिए तो दोनों अज़ीज़ हैं।
सोचने लगा बचपन में जब माँ जबरदस्ती कोट पहना देती थी तो मैं उसका मन रखने को पहन लेता और माँ खुजली हो रही है या गर्मी लग रही है कह खुलवा देता।कल ऐसा ही करूँगा,गुस्सा न कर एक बार वो कोट पहन मांँ को खुश कर दूंँगा।
अगले दिन माँ कोट नहीं लाई तो बिट्टू कमरे में गया,"माँ आज तुम मुझे छोड़ने नहीं आईं।"
हँस कर प्यार करते हुए बोली,"तू बड़ा हो गया है रे!अब मेरा बचपन वाला बिट्टू नहीं रहा।खुद पापा बन गया है।अपना ध्यान खुद रखना सीख....।"और कह आँसू छलका दिए।
विपिन जानता था आज फिर उसकी गृहस्थी में शांति बनी रहे,यह सोच माँ ने अपने कदम पीछे कर लिए हैं।सच माँ जैसा कोई नहीं।
©मीताजोशी

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Girish Upreti

Girish Upreti 3 years ago

माँ-बेटे के संवादों का चित्रण चलचित्र की भांति आँखों के आगे आ गया

Seema Pande

Seema Pande 3 years ago

बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना

शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 3 years ago

बहुत सुंदर। बहुत ही सच्चे भाव

Meeta Joshi3 years ago

धन्यवाद शिवम जी🙏😊

Bina Chaturvedi

Bina Chaturvedi 3 years ago

मार्मिक चित्रण

Meeta Joshi3 years ago

धन्यवाद 🙏

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

भावपूर्ण और ह्रदयस्पर्शी..!

Meeta Joshi3 years ago

धन्यवाद सर🙏आप comment करते है तो।लगता है कुछ अच्छा लिखा है।

Bhavay Joshi

Bhavay Joshi 3 years ago

माँ के निश्चल प्रेम से भरपूर सच्ची कहानी👌

Meeta Joshi3 years ago

Thanku❤️

Shivangi lohomi

Shivangi lohomi 3 years ago

Beautiful story ❤️❤️👍👍💕💯💯🙏

Meeta Joshi3 years ago

Thanks❤️

Mukesh Joshi

Mukesh Joshi 3 years ago

माँ की भावनाओं का भावुक चित्रण।बहुत खूब।

Meeta Joshi3 years ago

शुक्रिया

दादी की परी
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