कविताअतुकांत कविता
धागे पहले
उलझते हैं
फिर सुलझते हैं
रंग पहले बिखरते हैं
फिर आकृतियों का रूप लेकर
कोरे कागज के टुकड़ों पर
सजते हैं
जीवन पहले मिलता है
फिर समय के साथ साथ
उसका हाथ पकड़कर
चलता है
चलते चलते थक जाता है तो
किसी मोड़ पे रुकता है
गला सूखता है
प्यास से तड़पता है तो
गला तर करने के लिए
पानी का दरिया खोजता है
पसीना बदन से
टपकता है तो
उसे सुखाने के लिए
पेड़ की ठंडी छांव में
बैठता है
पांव के छालों पर
मरहम लगाता है
दिल का हाल
कोई नहीं सुनता तो
खुद को सुनाता है
एक ही स्थिति में
बैठा बैठा जब थक
जाता है तो
कुछ नया तलाशने के
लिए
एक नये सफर पर
तरोताजा होकर
फिर से
निकल जाता है।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) - 202001