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धागे पहले उलझते हैं - Minal Aggarwal (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

धागे पहले उलझते हैं

  • 271
  • 4 Min Read

धागे पहले
उलझते हैं
फिर सुलझते हैं
रंग पहले बिखरते हैं
फिर आकृतियों का रूप लेकर
कोरे कागज के टुकड़ों पर
सजते हैं
जीवन पहले मिलता है
फिर समय के साथ साथ
उसका हाथ पकड़कर
चलता है
चलते चलते थक जाता है तो
किसी मोड़ पे रुकता है
गला सूखता है
प्यास से तड़पता है तो
गला तर करने के लिए
पानी का दरिया खोजता है
पसीना बदन से
टपकता है तो
उसे सुखाने के लिए
पेड़ की ठंडी छांव में
बैठता है
पांव के छालों पर
मरहम लगाता है
दिल का हाल
कोई नहीं सुनता तो
खुद को सुनाता है
एक ही स्थिति में
बैठा बैठा जब थक
जाता है तो
कुछ नया तलाशने के
लिए
एक नये सफर पर
तरोताजा होकर
फिर से
निकल जाता है।

मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) - 202001

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