कविताअतुकांत कविता
काश यह मेरा
घर होता
आसमान के पार
जंगल के एकांत में
बसा
एक खुदा का
दर होता
मुझे किसी की जहां
आवाज न सुनती
बस चिड़ियों का बसेरा
और आशाओं का सवेरा
होता
जहां मुझे चैन की
बिना सपनों की नींद
आ जाती
कोई सुबह होने पर भी
न उठाता
जहां मुझे कहीं न जाना होता
चांद की किश्ती में होकर
सवार
पहाड़ियों के पीछे बसी
किसी अंजान बस्ती में
नदिया के उस पार
मैं रहती
अपने ही घर की किश्ती
में
पानी के बुलबुलों और
आसमान के बादलों में
तैरती
मैं होती और
साथ में होता
मेरा दिल
पानी के तैरते दर्पण में
भूले से मैं किसी की
परछाई न देख पाती।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) - 202001