कवितालयबद्ध कविता
8 मार्च , महिला दिवस
मां की अनुभूति
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मां तू रुह आधारी
हमें हो जीवन देती
पालन करती पोषण देती
वात्सल्य से जग भर देती
लाड प्यार को रहती तत्पर
खिलाने को स्मित आतुर
तु हाथ पकड़े चलती डोर
जिसका अनंत होता छोर
माँ तु है ममतामयी
वयस्क पुत्र की स्नेहमयी
तुम्हारी नजरें है अनेक
छूट जाए तो दौड़ती है देख
मेरी तु हो अभिभावक
असमर्थ में हो सहायक
कष्टों को उपकार जानती
हार से कभी न हार मानती
पार्वती, अपर्णा , दुर्गा , काली
बन जाती रणचंडी कराली
हो जाती यदि खड़ी अड़कर
प्राण भी ले आती लड़कर
जब रहा करती तु मौन
समझे न कोई तु है कौन
डाले जो मुझपर कुदृष्टि
चकरा देती सम्पूर्ण सृष्टि
कोमल हो वाह्य तल से
है कठोर अन्तर तल से
हम सब पर सदैव है दृष्टि
पड़ने ना देती कोई कुदृष्टि
तुम करुणा की हो सागर
खुशियों से भर देती गागर
दिल में तू हमें बसती
स्नेह प्यार तु हमें बरसाती
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@©✍️ राजेश कु०वर्मा'मृदुल'
गिरिडीह (झारखण्ड)