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आँखों का पानी - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

आँखों का पानी

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मेरी रचना

आँखों का पानी

आँखों की गगरी से छलकी
शबनमी बूंदों की लड़ियाँ
सहमती गालों पे उतरी
सिसकती हैं स्वर लहरियां
कहते इन्हें आँखों का पानी
इनकी नहीं है कोई सानी

ढलकते मोती से ये हैं
खुशनुमा आए जो घड़ियां
आँखों से आंसू बरसते
ओठों पे हंसती फुलझड़ियां
कहते इन्हें आँखों का पानी
इनकी नहीं है कोई सानी

माँ की आँखों के आंसू
ममता का बहता है झरना
गंगाजल सा है ये पावन
सारे दुःखों को है भगाता
कहते इन्हें आँखों का पानी
इनकी नहीं है कोई सानी

दुःख में जब बहते हैं आंसू
बोझ दिल का ये भगाते
रह रह के पीड़ा है उभरती
थमने का ना नाम लेते
कहते इन्हें आँखों का पानी
इनकी नहीं है कोई सानी

जब कोई अपना रूठ जाता
आँखों के आंसू सूख जाते
हिचकियाँ करती बयां हैं
द्वार पे नज़रे टिकाते
कहते इन्हें आँखों का पानी
इनकी नहीं है कोई सानी

झूठों मक्कारों की बातें
मगर के आंसू ये रोते
चाय की बस चुस्कियों में
किस्से कहानी ये बनाते
कहते इन्हें आँखों का पानी
इनकी नहीं है कोई सानी

नन्हे मुन्नों का रुदन
मासूमियत का सफरनामा
हर एक पल में रंग बदले
रोते में हंसना सिखाते
कहते इन्हें आँखों का पानी
इनकी नहीं है कोई सानी

बालपन के प्रिय सखा से
सुदामा मिलने को आए
पावनी सी अश्रुधारा
चरण कृष्णा के भिगोते
कहते इन्हें आँखों का पानी
इनकी नहीं है कोई सानी

फ़ासले कितने भी हो
नज़दीकी का अहसास हो
मीरा की भक्ति के आंसू
जन्मों का नाता निभाते
कहते इन्हें आँखों का पानी
इनकी नहीं है कोई सानी
स्वरचित
सरला मेहता
94,गणेशपुरी,खजराना
इंदौर

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