कवितालयबद्ध कविता
जिन्दगी ख़्वाहिशों का ढेर हो गयी
दिया तूने सब पर थोड़ी देर हो गयी
खुशियां सारी जलीं मेरी शोलों में धूं धूं कर
नशीब मेरी ये दिलफरेब हो गयी।
कई ख्वाब पाले थे मम्मी ने पापा ने
अब जलते हुए दिये की तेल हो गयी
फब्तियां वो कसते हैं जिनको बोलना नही आता
जिन्दगी शमशान का खेल हो गयी।
बचपन बड़े नाज से बिता था अपना
ससुराल मिला ऐसा ,की जेल हो गयी
फेहरिस्त समानों का अभी तक वहीं पर अड़ा
कर कर के हौसला अब फेल हो गयी।
दुनिया की रीत बड़ी ही बेईमानी सी लगे
बेटी यहाँ सबको ही परेशानी सी लगे
ना अपनी सी लगे ना बेगानी सी लगे
सुनी हुई किसी कहानी सी लगे।
बड़े ही कश्मकश में बीते ये जिन्दगी
अपनों के लिए सबकुछ सहती है ये बेटी
पर दहेज का राक्षस अब तक वहीं खड़ा
अब तू ही बता की राख मेरी कौन ढोयेगा।