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"राख मेरी कौन ढोयेगा " - Bandana Singh (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

"राख मेरी कौन ढोयेगा "

  • 204
  • 4 Min Read

जिन्दगी ख़्वाहिशों का ढेर हो गयी
दिया तूने सब पर थोड़ी देर हो गयी
खुशियां सारी जलीं मेरी शोलों में धूं धूं कर
नशीब मेरी ये दिलफरेब हो गयी।

कई ख्वाब पाले थे मम्मी ने पापा ने
अब जलते हुए दिये की तेल हो गयी
फब्तियां वो कसते हैं जिनको बोलना नही आता
जिन्दगी शमशान का खेल हो गयी।

बचपन बड़े नाज से बिता था अपना
ससुराल मिला ऐसा ,की जेल हो गयी
फेहरिस्त समानों का अभी तक वहीं पर अड़ा
कर कर के हौसला अब फेल हो गयी।

दुनिया की रीत बड़ी ही बेईमानी सी लगे
बेटी यहाँ सबको ही परेशानी सी लगे
ना अपनी सी लगे ना बेगानी सी लगे
सुनी हुई किसी कहानी सी लगे।

बड़े ही कश्मकश में बीते ये जिन्दगी
अपनों के लिए सबकुछ सहती है ये बेटी
पर दहेज का राक्षस अब तक वहीं खड़ा
अब तू ही बता की राख मेरी कौन ढोयेगा।

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत खूब 👌🏻

Bandana Singh3 years ago

बहुत बहुत आभार आपका

प्रपोजल
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