कवितागीत
"नायक "
बेताबियाँ बढ़ने लगीं हैं , समां भी हो गया है आशिक़ाना
कह भी दे जो दिल में है तेरे , अब ना बना कोई बहाना
इनकार और इक़रार की कश्ती में सवार हम तुम
दिल-ए-दरिया किस तरह करेंगे पार ओ जानेजाना
" नायक "
बेधड़क मेरे सपनों में आती हो
बिन इज़ाज़त घर में भी आ जाओ
तुम लाख छुपाओ मगर
चुगलखोर अँखियाँ, चुगली कर ही जाती हैं
जो तुम नहीं कहतीं , वो सब कुछ कह ही जातीं हैं
अब छोड़ो भी ये बहाने, बेवजह के तरसाने
दिल-ए-दरिया किस तरह करेंगे पार ओ जानेजाना
"नायिका "
हाँ दिल तो मेरा भी धड़कता है
तेरे एहसास-ए-ख़्याल से
निखरती जा रही हूँ
तेरे मिलन की आस में
इज़हार-ए-मोहब्बत कर तो लूँ
पर तेरे इनकार से घबराती हूँ
क्या मेरी आँखें हाल-ए-दिल बयां नहीं करतीं
क्या मेरी बातें तुम्हें समझ नहीं आतीं
दिल-ए-दरिया किस तरह करेंगे पार
इनकार और इक़रार की कश्ती में सवार हम तुम
किस तरह इज़हार-ए-मोहब्बत करेंगे हम तुम
"नायक " - क्या तुम्हें भी प्यार है मुझसे ....
"नायिका" - हाँ मुझे भी प्यार है तुमसे .....
" नायक " - बोलो मोहब्बत बेशुमार है मुझसे ....
"नायिका"- हाँ कह तो दिया मोहब्बत बेशुमार है तुमसे ....
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Anamika pravin sharma
Mumbai