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काजल - Ritu Garg (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

काजल

  • 260
  • 3 Min Read

काजल

आया है कहां से यह,
इतना प्यार लेकर।

अनकहे जज्बातों का,
दिल का करार बन कर।
काजल तो काला है यह,
आया है जादू बन कर।

आया है कहां से यह,
इतना प्यार लेकर।

आंखों की सुंदरता का,
मतवाला इकरार बन कर।
मोहब्बत की दास्तां का,
अनूठा पैगाम बन कर।

आया है कहां से यह,
इतना प्यार लेकर।

मन की परिभाषा का यह,
जज्बातों की रोशनी लेकर।
चेहरे की मादकता का,
इजहार बन कर।

आया है कहां से यह,
इतना प्यार लेकर।

आंगन के उजियारे से आया,
दीपक की लो बनकर।
काली नजरों को दूर हटाया,
माथे का काला टीका बनकर।

ऋतु गर्ग
स्वरचित, मौलिक रचना
सिलिगुड़ी, पश्चिम बंगाल

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत खूब

Ritu Garg3 years ago

धन्यवाद नेहा जी

प्रपोजल
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