कवितालयबद्ध कविता
काजल
आया है कहां से यह,
इतना प्यार लेकर।
अनकहे जज्बातों का,
दिल का करार बन कर।
काजल तो काला है यह,
आया है जादू बन कर।
आया है कहां से यह,
इतना प्यार लेकर।
आंखों की सुंदरता का,
मतवाला इकरार बन कर।
मोहब्बत की दास्तां का,
अनूठा पैगाम बन कर।
आया है कहां से यह,
इतना प्यार लेकर।
मन की परिभाषा का यह,
जज्बातों की रोशनी लेकर।
चेहरे की मादकता का,
इजहार बन कर।
आया है कहां से यह,
इतना प्यार लेकर।
आंगन के उजियारे से आया,
दीपक की लो बनकर।
काली नजरों को दूर हटाया,
माथे का काला टीका बनकर।
ऋतु गर्ग
स्वरचित, मौलिक रचना
सिलिगुड़ी, पश्चिम बंगाल