कविताअतुकांत कविता
आज कुछ नया लिखूंगी
बहुत लिखा सजनी पर, साजन पर
मौसम पर, बादल पर
चूड़ी, बिंदिया, घूंघट पर
रिश्तो की मर्यादा पर,
आज कुछ नया लिखूंगी....
दहेज रूपी दानव
जो सुरसा की तरह
मुंह खोले आए दिन
निगल जाता है
मेरी कई बहनों को.....
जितना दाना डालोगे
उतना बड़ा मुंह खुलता है
इस दैत्य का
इसका मुंह बंद करना होगा
सदा सदा के लिए....
बहुत कानून बने, बहुत बातें हुईं
पर दुर्घटनाएं कम ना हुई,
स्त्री को स्त्री की आवाज़ बनना होगा
अपने अधिकारों के लिए
आज लड़ना होगा.....
शिक्षा और समानता की अलख जगा
अज्ञानता और अपराधबोध
का चोला फेंकना होगा
नहीं मिलता कुछ भी जहां में
मांगने से......
छीनना होगा अधिकार अपना
करें गर कोई प्रतिकार
हुंकार का स्वर साधना होगा
जीवन अनमोल है स्त्री का
इस बात को गांठ बांधना होगा....।
sach hai Dahejpratha ko khatam karne ke liye Shiksha Anivarya hai
Ji..