लेखअन्य
गोस्वामी जी की प्रसिद्ध चौपाई है,
" सकल पदारथ हैं जग माहीं
कर्महीन नर पावत नाहीं "
मैंने इसकी दूसरी पंक्ति का रूपान्तरण करके व्यंग्य के साँचे में ढालने का प्रयास किया है, कुछ इस तरह,
" सकल पदारथ हैं जग माहीं
फेंकवीर जन पावत ताहीं "
नर की जगह जन लिखा है कहीं फेंकवीरांगनायें अपनी इस उपेक्षा पर मुझसे रुष्ट होकर ना जाने कौन सा पदारथ मुझ फेंक दें. आजकल इस कोरोनायुग में तो सूक्ष्म पदारथ भी मन को ऐसे क्लीन बोल्ड कर देते हैं कि अंपायर के संकेत की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती. मन स्वतः ही "बैक टु दि पैवीलियन" होकर क्वारंटाइन होने लगता है. उनके चेहरे पर छाया क्रोध का रेड़ जोन कहीं सचमुच रेड़ जोन ना बन जाये इसलिए दूर से ही नमन करते हूए विषय को फेंकवीर नरों पर ही केंद्रित करके ग्रीन जोन में ही सिमटता हूँ.
हाँ, तो "फेंकवीर जन पावत ताहीं". अब पाना और खोना तो प्रारब्ध के अधीन है किंतु पाये बिना ही पाने का फेंकिंग पुरुषार्थ तो फेंकवीर ही कर सकते हैं. वैसे भी पाना तब तक निरर्थक है जब तक समूचे ब्रह्मांड में इसकी घोषणा न हो जाये. इसलिए अघोषित, अप्रचारित उपलब्धि से सुप्रचारित, सर्वविदित अनुपलब्ध पदारथ की बखानबाजी अधिक सुख देती है क्योंकि सामने वाले के चेहरे के धूमिल पड़ते रंग से खुशी दुगनी हो जाती है.
आप कोई गाडी़ या फिर साडी़ खरीदें, पदोन्नति पायें या फिर बाॅस से शाबाशी पायें तो यह सब प्रचार के बिना आजकल बैंक में जमा रकम की तरह निरर्थक ही है क्योंकि यह अपना सा लगता ही नहीं. उससे तो "यावज्जीवेत् सुखेन जीवेत्, ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत्" वाले जीवनदर्शन के अनुयायी अधिक सुखी हैं या फिर खाने के बजाय झोले में पैक कर ले जाने वाले आनंद ले रहे हैं.
अब कुछ फेंकवीरों का प्रशस्तिगान हो जाये. मेरे एक अतिवरिष्ठ सहकर्मी निष्काम भाव से इतना बिंदास फेंकने में विश्वास करते थे कि फास्टेस्ट बाॅलर भी नतमस्तक हो जाये. हुआ यूँ कि हमारी कंपनी ने पच्चीस वर्ष पूरे करने पर सिल्वर जुबली गिफ्ट देने की घोषणा की और तीन-चार विकल्प देकर सबसे एक-एक विकल्प चुनने को कहा. अधिकांश ने वाटर फिल्टर चुना मगर मेरे इस माननीय मित्र ने सूटकेस चुना. पूछने पर बताया कि उनके पास पहले से ही वाटर फिल्टर है, "गंगा वाटर फिल्टर". किसी ने उनकी फेंकाभिलाषा को जागृत करते हुए पूछा, " सर, गंगा वाटर फिल्टर है ना. फिर तो पानी भरने के जरुरत नहीं ". नमन करता हूँ मैं इस समर्पित फेंकभाव को. उन्होंने हाँ की मुद्रा में सिर हिला दिया.
एक और मित्र जिनके बारे में यह कहा जाता था वे वायु सेना में पायलट का काम करते थे, इसी कोटि के फेंकवीर थे. शायद शत्रु पर बम की जगह
ऐसे ही तीर तुक्के छोड़ते होंगे. एक दिन मुझे बताने लगे, नहीं, नहीं, मुझे बहाने लगे, " मैंने एक बार इंदिरा जी को विमान-यात्रा करवाई थी. खिड़की से बाहर झाँकते हुए उन्हें गन्ने के खेत देखकर गन्ना चूसने की तृष्णा जाग गयी और मैंने फटाफट विमान को डाइव करके एक हाथ खिड़की से बाहर निकाला और एक गन्ना उखाड़कर इंदिरा जी को अर्पित कर दिया. जब तक वे उसे छीलती, उससे पहले ही विमान फिर आकाश में पहूँच चुका था. मैंने बाहर से उनकी वीरगाथा को प्रणाम करते हुए मन ही मन कहा, " और इससे पहले आपकी आँख खुल गयी और आपने स्वयं को बिस्तर पर पाया. "
एक बार ये वीरशिरोमणि खेत में लोटा लेकर निवृत्त होने के लिए गये. तभी एक शेर आ गया. इन्होने आव देखा ना ताव. लोटे में हाथ डालकर मुठ्ठी बाँधकर शेर के मुँह पर जोरदार मुष्टिप्रहार किया. अब पता नहीं लोटे की चमक से या फिर तीव्र वेग से शेर पीठ दिखाकर भाग गया और इन्होंने भागते हुए शत्रु को माफ कर दिया. धन्य हैं ये शेर को परास्त करने वाले सवा सेर. अच्छा हुआ कि शेर के दाँत गिनकर भरत का इतिहास दोहराने का दावा नहीं किया.
एक और फेंकवीर मित्र सींकिया पहलवान थे. कहते थे कि उनके गाँव में एक कुत्ते के काटने से अनेक लोग मर गये थे. एक दिन उस कुत्ते ने उन्हें काट लिया और वह कुत्ता स्वर्ग सिधार गया. उस दिन के बाद सब लोग उनसे सोशल डिस्टेंसिंग बनाकर रहने लगे.
फेंकने की इस ऊँचाई को देखकर कहीं आकाश हीनभावनाग्रस्त होकर धराशाई ना हो जाये, इस भय से इस फेंकगाथा को पूर्णविराम देता हूँ.
द्वारा : सुधीर अधीर