कहानीलघुकथा
जुनून
व्हील चेयर उसकी सबसे बड़ा सहारा थी, पूरे घर का चक्कर वो इ, पर बैठ लगाती,अब उम्र भी काफी हो चुकी थी, वक़्त काटे नहीं कटता सभी तो अपने-अपने कामों पर चले जाते हैं सिर्फ वही है जो घर पर अकेले रहती,उसका एक पुराना ग्रामोफोन था जिस पर वो गाने सुनती और अपने अतीत को याद करती , वो दिन भी क्या दिन थे, किन- किन हालातों से गुज़र कर उसने बेस्ट नृत्यांगना का खिताब पाया । बस यही तो उसका जुनून था ।
ग्रामोफोन पर बजते गाने के साथ वह अतीत में खो गई।उसके नाम शहर के जाने-माने नृत्यालय से बेस्ट नृत्यांगना का सर्टिफिकेट पहुंचा उस पल बाबा की आंखे भर आई किसी ने कहाँ चाहा था कि वह शहर जाए ,वह भी डांस सीखने कितने विरोध सहे उसने अपने पैशन को अंजाम देने के लिए ।
सीमाएं और दायरे की बात तो सबने सिखाई पर उसके भीतर ऊंची उड़ान भरने के सपने को कोई पढ़ न सका । वह उन सब बातों को नकार देना चाहती थी, जो अक्सर समाज में बेटियों को लेकर कही जाती हैं। मुक्ति चाहती थी वह इन सब बातों से।
"ये मत पहनो, वहाँ मत जाना, उससे बात क्यों करती हो? लड़की हो कुछ घर का काम भी कर लिया करो! ज़्यादा हंसकर बातें अच्छी नहीं लगती, बस यही सुन सुनकर ऊब चुकी थी ।
वह तो वैसे भी एक पैर से अपंग थी और जुनून सवार था मशहूर नृत्यांगना बनने का, जहाँ संकीर्ण समाज हो वहाँ लड़की का नाचना-गाना । घर से ही उस पर प्रतिबंध लगने लगे पर मयूरी मन कहाँ मानने वाला था, वह तो छिप-छिपकर एक टांग पर ही सही घर पर ही घण्टों डांस करती । उसके जुनून और जज़्बे को परख लिया शहर से आई बुआ जी ने बहुत प्यार और समझदारी से बाबा को समझाया-" कि समाज क्या कहेगा की बात भूलकर अपनी बेटी के सपनों को पनपने दो,कुछ दिन मेरे साथ शहर के नृत्यालय भेज दो उसके हुनर को मत रोको ।"आखिर बाबा ने बात मान ली और श्रेया शहर आ गई। उसकी प्रतिभा को पंख मिल गए, जल्दी ही वह नृत्यालय की सबसे बेहतरीन नृत्यांगना बन गई।
बुआ के प्रयासों से श्रेया को सारे बंधन, ज़न्जीरों को तोड़ एक ऊंची उड़ान भरने की दिशा मिल चुकी थी और उसके अरमानों के परिंदे परवाज़ भर रहे थे।
फिर किसी गाने के खत्म होने के साथ उसकी भंगिमा टूटी वह अतीत से बाहर आई , खुद को व्हील चेयर पर नृत्य की मुद्रा में पाया, अभी भी बीते कल का छायाचित्र दीवार पर नज़र आ रहा था ।
मौलिक
डॉ यास्मीन अली
हल्द्वानी , उत्तराखंड।