कविताअतुकांत कविता
माना की जिंदगी में साधन का आभाव है,
मेरे अंदर फिर भी जिंदा रहने का चाव है।
माना की शायद कभी सिनड्रेला नहीं हो सकती,
तो क्या हुआ अपने मन की परी तो हूं हो सकती।
खुश रहने के लिए साधन नहीं जुनून चाहिए,
पैर न भी हो तो नाचने के लिए सुरूर चाहिए।
बदसूरत हूं मैं ऐसा क्यों सोचूं और क्यों मानू,
खुदा का नायाब करिश्मा हूं बस खुद को पहचानू।
उड़ते हुए हवा बहते पानी को कौन रोक पाया है,
'किरन' हो भरोसा खुद पर तो आसमां भी ज़मीं पर आया है।