कहानीसामाजिक
फूली रोटी
निर्मली का चार साल का बेटा टी वी पर जिस भी खाने-पीने का इश्तहार देखता है,बस उसी की जिद्द करता है।अब वह क्या करें?भानू तो सुबह-सवेरे काम पर निकल जाता है,सारा दिन निर्मली रह जाती है रिंकू की फरमाइशें पूरी करने को, अकेली।
वैसे निर्मली बहुत होशियार है।वह भी टी वी और यू ट्यूब से देखकर बहुत कुछ बना लेती है मगर आज उसने कुछ और ही सोचा है।उसने प्यार से बेटे को सामने बैठाया और पूछा,"रिंकू, कहानी सुनोगे,बेटा?"
अब भला कौन सा ऐसा बच्चा है जो कहानी सुनने को मना कर दे! रिंकू बोला,"हां,मां हां।"
निर्मली तवे पर फूली गर्म ,गोल रोटी दिखाते हुए बोली,"ये कैसी लग रही है,खुश या उदास?"
"मां,यह क्या बात हुई, कहानी कहो न।"।
"कहानी ही कहने जा रही हूं,पहले मेरे सवाल का जवाब तो दो।यह खुश हैं या उदास?"
"खुश है तभी तो फूली है,उदास कहां?"
"बिल्कुल सही कहा,मगर यह उदास हो जाती है जब हम इसे खाना छोड़ देते हैं।जब तुम बर्गर खाने की जिद्द करते हो तो जानते हो, बन इसे मुंह चिढ़ाता है।उस दिन जब तुमने इसे थाली में देखकर रोना धोना शुरू किया तब यह भी रोने लगी थी।"
"मां,रोटी कैसे रो सकती है,आप ऐसे ही कह रही हैं।"
निर्मली ने थाली में जानबूझकर कपड़ा नहीं लगाया था,रोटी नीचे से गीली हो चुकी थी।उसे दिखाते हुए बोली,देखो,इसका पूरा चेहरा आंसुओं से भीगा है।बेटा,तुम इसे खाने से मना करते हो और पिज़्ज़ा,बर्गर,समोसे,कचोरी,पाव-भाजी,चाउमिन स्प्रिंग रोल,पास्ता ही खाना चाहते हो। अब मुझे बताओ, अगर कोई तुमसे प्यार नहीं करेगा, तो तुम्हें कैसा लगेगा? बुरा लगेगा ना,उदास हो जाओगे ना, तो बस रोटी को भी ऐसे ही रोना आता है।वह भी मुस्कुराना छोड़ देती है।"
"मां,रोज- रोज एक ही चीज़ खाना अच्छा नहीं लगता।"
"मैं मानती हूं बेटा,मगर हर रोज फास्ट फूड खाने से तुम मजबूत और बड़े नहीं बन पाओगे। मैं और तुम्हारे पापू कितना काम करते हैं और थकते भी नहीं, बताओ क्यों?क्योंकि हम अपनी मां के हाथ की बनी रोटी-सब्जी खाकर बड़े हुए।
"मां,यह गोल फूली हुई रोटी से तो हवा निकल जाएगी तो यह भी पिचक जाएगी।"
"इसीलिए मेरे लाल,मैं लगाती हूं इस पर मक्खन और ले, गर्मागर्म खा।"
गीता परिहार
अयोध्या