कवितानज़्म
हे केशव तुमको लगता है वो मुझको रोक पायेगा
गांडिवधारी पार्थ तुम्हारा मुझको युद्ध में डरायेगा
तुम सृष्टि का भार लिये बैठे हो उसके रथ पर
मैंने भी धूली लगायी है मातृ चरणों की मस्तक पर
अपने बाणों की वर्षा से क्या मुझपर प्रतिबंध लगायेगा
सारा संसार देखेगा जब कर्ण धनुष पर प्रत्यंचा चढाऐगा
बिजली कौंधेगी आसमान में हर यौद्धा घबरायेगा
जब रणभूमि में महारथी अर्जुन से ये सूतपुत्र टकरायेगा
अब युद्ध अंतिम चरण पर है देखे कौन किसको हरायेगा
रणचंडी है प्यासी कबसे कौन इसकी प्यास बुझायेगा
~~ नरेश बोकण गुर्जर ~~
हिसार, हरियाणा
बहुत ही सुंदर भक्तिभाव में पगी रचना 👌🏻
धन्यवाद मैम