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अलविदा - Madhu Andhiwal (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

अलविदा

  • 274
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अलविदा ----
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मन दुखी दिमाग खाली क्या हो रहा है। जिसके घर का चिराग बुझ गया । मांग का सिन्दूर उजड़ गया। बाप का साया चला गया । बहन की राखी वाला हाथ खो गया और हम भाषणों में उलझ गये ।सब राजनीति के फायदे के लिये आरोप प्रत्यारोप करने लगे । जनता जो भीड़ है वह केवल शोर के साथ पीछे चलती है।
हम सबको सोचना है ठंडे दिमाग से देश हित की बातें अपनी आने वाली पीढ़ी के बारे में । नौजवान रास्ते से भटक रहा है। संस्कृति विलुप्त हो रही है।
ये सब विचार पिछले दिनों से दिमाग को मंथ रहे हैं। कैन्डिल मार्च निकाले जा रहे हैं पर हंसते हुये नेता मंच पर शोक सभा के लिये एकत्रित हैं पर चेहरे पर मुस्कराहट लिये हुये । सब रैली चल रही हैं उद्घाटन चल रहे हैं।
हां दर्द दिखाई दिया जिनके लाल चले गये । देश भक्ति केवल 15 अगस्त और 26 जनवरी को ही दिखाई देती है।
चलो देखती हूँ मीडिया पर कौन कौन चीख रहा है एक दूसरे पर । मेरे वीर जवानों देश केवल तुम्हारे हाथ में हैं वाकी सब स्वार्थ में जी रहे हैं।
अलविदा ।
डा. मधु आंधीवाल
अलीगढ़

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

आज की कटु वास्तविकता

Madhu Andhiwal3 years ago

Thanks

के . मौर्या

के . मौर्या 3 years ago

Jay Hind🇮🇳🇮🇳🇮🇳

Madhu Andhiwal3 years ago

Thanks

Madhu Andhiwal3 years ago

Thanks

दादी की परी
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