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प्यारा घर - Bandana Singh (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

प्यारा घर

  • 168
  • 4 Min Read

फिर याद आया वो टूटा फूटा मकां अपना
बेतरतीब जिन्दगी और छिटका समान अपना
वो खूँटी से टंगी तंग दिवारों पर कपड़े की पोटली
वो रोज ढोती साइकल पर अरमान अपना।
चंद सासों का वो मालिक जो था घर
झांकती सूरज जिसके सांकल के अंदर
कुछ रोके हुए सपनों को निगेबाह अपना
फिर याद आया वो टूटा फूटा मकां अपना
न जाने कितने ही प्रेम के जिसमें तोहफे सजे थे
भले ही झरते हैं अब धूल जो है बियाबां अपना।
कभी तार तार होके छप्पर जहां बूँदें बरसती थी
छन करती थी सिहरन वो साजो समान अपना
फिर याद आया वो टूटा फूटा मकां अपना।
जिसने हर मुसीबत में लड़ना सिखाया
चंद सासों को जिसने जिन्दगी बनाया
धड़कती हैं जहाँ अब भी पुरखो की धड़कने
कुछ धुंधली यादे कुछ संजोये सपने
जहाँ बचपन की परछाई किलकारी मारती
जहां बेबस जिन्दगी भी रह रह भारती
याद आता है अब वो साजो समान अपना
फिर याद आया वो टूटा फूटा मंका अपना।

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Rajesh Kr. verma Mridul

Rajesh Kr. verma Mridul 3 years ago

सुंदर प्रस्तुति।

Bandana Singh3 years ago

बहुत बहुत आभार आपका

प्रपोजल
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