Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
*कसक* - Pallavi Rani (Sahitya Arpan)

कविताघनाक्षरी

*कसक*

  • 322
  • 5 Min Read

* कसक *
❤❤❤❤❤
✍✍
शहर की ऊँची इमारतों और,
चमचमाती चकाचौंध में।
वो तारों की मनभावन टिमटिमाहट
ढूँढती हैं मेरी उदास आंखें ।।
✍✍
दो कमरों के बंद फ्लैट के,
कुशन लगे सोफ़े पर बैठ
खुले आंगन की चारपाई पर
गूंजती अपनों की खिलखिलाहट।
ढूँढती हैं मेरी उदास आँखें ।।
✍✍
कालबेल की ऊँची आवाज सुन,
दरवाजे को खोलने जाने तक
वो गाँव वाले पुराने घर की
साँकल की सुहानी खटखटाहट।
ढूँढती हैं मेरी उदास आंखें ।।
✍✍
वो पिंजरे में बंद पंछियों की,
उदास सी रुआँसी बोली में
वहाँ बरामदे में उड़ती गौरैया
और प्यारी चिडियों की चहचहाहट।
ढूँढती हैं मेरी उदास आंखें ।।
✍✍
शहर की भीड़ में खो गयी हूँ मैं ,
हाँ, कितना अकेला हो गयी हूँ मैं
दादी-नानी, बचपन के किस्से
टूट गया संसार सलोना
बाँट लिए जब मन के हिस्से।
✍️✍️
अब समझा चित्त की बेचैनी,
टूटे नातों की खोयी गरमाहट ।
ढूँढती हैं मेरी उदास आँखें ।।

पल्लवी रानी
मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित
कल्याण, महाराष्ट्र

inbound3061266873652910831_1613912371.jpg
user-image
Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 4 years ago

सुन्दर और भावपूर्ण..!

Pallavi Rani4 years ago

सादर धन्यवाद 🙏

प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg
चालाकचतुर बावलागेला आदमी
1663984935016_1738474951.jpg
वक़्त बुरा लगना अब शुरू हो गया
1663935559293_1741149820.jpg