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विरहिन - Himanshu Samar (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

विरहिन

  • 558
  • 4 Min Read

चित्र पर आधारित रचना उस विरहिणी को समर्पित है जो अपने साजन की राह देखती रहती है,,,,



जिसका पिय परदेश गया है

उसकी पत्नी क्या करती होगी,

आँच न आये मेरे सिंदूरी को

ये सोच सोच कर डरती होगी।

वे नयन नहीं जो निहार सके,

फिर किसके लिए संवरती होगी।

करके याद पिया को अपने,

छुप छुप आहें भरती होगी।

सौभाग्य बड़ा जो सुहागन है पर

पल पल तिल तिल मरती होगी।

ख्वाब समेटे दिल के अंदर,

खुद तो रोज बिखरती होगी।

निसदिन नयन निहारे निज को,

मायूसी से फिरती होगी।

क्या बसन्त क्या सर्दी गर्मी,

बारिश जैसे गिरती होगी।

जो रैन ले आती सपने सुहाने,

उसमें भी वो विहरती होगी।

कष्ट उठा के पल पल प्रतिक्षण,

मुँह से कुछ न तिखरती होगी।

साथ रहने के सपनों को अब,

पैरों के नीचे दरती होगी।

रहके दूर पिया से फिर भी,

कितना प्यार वो करती होगी।।



Himanshu Samar

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Shashi Ranjana

Shashi Ranjana 3 years ago

सुंदर रचना👍👍

Ritu Garg

Ritu Garg 3 years ago

सुंदर प्रस्तुति

Himanshu Samar3 years ago

धन्यवाद

Sarita Gupta

Sarita Gupta 3 years ago

हमें तो रचना बहुत अच्छी लगी ।

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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प्रपोजल
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माँ
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तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
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