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ख्वाहिश - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

ख्वाहिश

  • 167
  • 3 Min Read

#चित्राक्षरी
#२१/०२/२०२१

ख्वाहिश

ये खुशनुमा मौसम,कुदरत का करम
हसीन वादियां , खिलखिलाते सुमन।

बहकता तन-मन,महकता चमन
ठंडी-ठंडी हवाएं सुनाएं सरगम ।

सूरज। की पहली किरणें चूमें पैशानी मेरी
हसीन चाँदनी संवारे बिखरी जुल्फें तेरी।

कल-कल नदी एक बहती रहे
पंक्षी बसैरों में हरदम चहकते रहें।

हम-तुम यूं ही खुले आसमां तले
तारों की महफ़िल में शिरकत करें।

जहां आए न पतझड़ का मौसम कभी
संजीदा सी ख्वाहिश मेरी टूटे न कभी।

बंदिशें छूटें सभी पहरे न कोई हों
आज़ाद हो पंख ,उड़ने को फलक हो।



गीता परिहार
अयोध्या

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शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 3 years ago

बहुत ही सुंदर

Gita Parihar3 years ago

आपका हार्दिक आभार

Vivek Prajapati

Vivek Prajapati 3 years ago

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Gita Parihar3 years ago

???

Vivek Prajapati

Vivek Prajapati 3 years ago

Sunder rachna

Gita Parihar3 years ago

आपका हार्दिक धन्यवाद

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