कवितालयबद्ध कविता
#चित्राक्षरी
#२१/०२/२०२१
ख्वाहिश
ये खुशनुमा मौसम,कुदरत का करम
हसीन वादियां , खिलखिलाते सुमन।
बहकता तन-मन,महकता चमन
ठंडी-ठंडी हवाएं सुनाएं सरगम ।
सूरज। की पहली किरणें चूमें पैशानी मेरी
हसीन चाँदनी संवारे बिखरी जुल्फें तेरी।
कल-कल नदी एक बहती रहे
पंक्षी बसैरों में हरदम चहकते रहें।
हम-तुम यूं ही खुले आसमां तले
तारों की महफ़िल में शिरकत करें।
जहां आए न पतझड़ का मौसम कभी
संजीदा सी ख्वाहिश मेरी टूटे न कभी।
बंदिशें छूटें सभी पहरे न कोई हों
आज़ाद हो पंख ,उड़ने को फलक हो।
गीता परिहार
अयोध्या