कवितालयबद्ध कविता
लगे झुमने डाली डाली
हवा चली फिर मतवाली
पतझर का मौसम बीता
आई बहारें फूलों वाली।
सरसों हुई सभी लताएं
फूले झूमें व लहराएं
मौज सभी का आया देखो
नवयौवन पर जैसे बालाएं।
पवन पुरवाई मचल चली है
दुल्हन जैसे डोली चढ़ी है
सारे पौधे यूं झूम रहे है
अंबर का मुख चूम रहे हैं।
पर प्रियतम तुम घर न आये
मीत तुम्हारी तुम्हे बुलाए
यह कैसा संयोग हुआ है
बंसत में ये बियोग हुआ है।
तुम सीमा पर ढाल बने हो
मन को मेरे मरोड़ चले हो
पूरी हो कैसे आशायें
रिमझिम अंखिया तुम्हे बुलाए।
सरसों का जो फूल खिला है
मेरे मन को ताप मिला है
लहर उठे जब लहरियां फसलें
नागिन सा ना मुझको डस लें।
अंबर नीला साफ हुआ है
चारों तरफ पर धुआँ धुआँ है
तुम आ जाओ पुलकित हो मन
क्यों कि आया ऋतुराज बसंत।