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आया बंसत झूम के - Bandana Singh (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

आया बंसत झूम के

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  • 4 Min Read

लगे झुमने डाली डाली
हवा चली फिर मतवाली
पतझर का मौसम बीता
आई बहारें फूलों वाली।

सरसों हुई सभी लताएं
फूले झूमें व लहराएं
मौज सभी का आया देखो
नवयौवन पर जैसे बालाएं।

पवन पुरवाई मचल चली है
दुल्हन जैसे डोली चढ़ी है
सारे पौधे यूं झूम रहे है
अंबर का मुख चूम रहे हैं।

पर प्रियतम तुम घर न आये
मीत तुम्हारी तुम्हे बुलाए
यह कैसा संयोग हुआ है
बंसत में ये बियोग हुआ है।

तुम सीमा पर ढाल बने हो
मन को मेरे मरोड़ चले हो
पूरी हो कैसे आशायें
रिमझिम अंखिया तुम्हे बुलाए।

सरसों का जो फूल खिला है
मेरे मन को ताप मिला है
लहर उठे जब लहरियां फसलें
नागिन सा ना मुझको डस लें।

अंबर नीला साफ हुआ है
चारों तरफ पर धुआँ धुआँ है
तुम आ जाओ पुलकित हो मन
क्यों कि आया ऋतुराज बसंत।

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Rajesh Kr. verma Mridul

Rajesh Kr. verma Mridul 4 years ago

उत्कृष्ट रचना

Bandana Singh4 years ago

बहुत बहुत धन्यवाद

प्रपोजल
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