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आह्वान - Kanak Harlalka (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

आह्वान

  • 305
  • 2 Min Read

मैं स्मृतियों में खोया था
तुम चाहत बन कर आई
सूखे तपते जीवन में
बदली सी बन कर छाई

ध्वनि तरंग तुम्हारी यंत्रों से
कानों में अमृत सा घोलें
ज्यों छूट रहा तन बन्धन से
यों मन के पहलू को छू लें

प्रारंभ दिवस का तुमसे हो
रात्रि के प्रहर कटे ऐसे
तुम सामने हो मूर्तित होकर
चन्द्र स्पर्श से मेघ छटें जैसे

अनवरत कथाएं यूँ तेरी
मन को प्लावित करती सी
मृत सम जीवन में जैसे
चंचल साँसे भरती सी

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Sarita Gupta

Sarita Gupta 3 years ago

अरे वाह, आपने बिल्कुल नायक के मन के भाव लिख दिए । लाजवाब रचना ।

Ritu Garg

Ritu Garg 3 years ago

बढ़िया है जी

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

अच्छी रचना

Alok Singh

Alok Singh 3 years ago

Wah.....lajawab

प्रपोजल
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माँ
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