कवितालयबद्ध कविता
मैं स्मृतियों में खोया था
तुम चाहत बन कर आई
सूखे तपते जीवन में
बदली सी बन कर छाई
ध्वनि तरंग तुम्हारी यंत्रों से
कानों में अमृत सा घोलें
ज्यों छूट रहा तन बन्धन से
यों मन के पहलू को छू लें
प्रारंभ दिवस का तुमसे हो
रात्रि के प्रहर कटे ऐसे
तुम सामने हो मूर्तित होकर
चन्द्र स्पर्श से मेघ छटें जैसे
अनवरत कथाएं यूँ तेरी
मन को प्लावित करती सी
मृत सम जीवन में जैसे
चंचल साँसे भरती सी