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मां भारती - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

मां भारती

  • 200
  • 5 Min Read

अतुल्य धरती भारत की
सबसे ऊंची पर्वत माला
दुनिया की विपुल आबादी
विविध पोशाक, भाषा शैली
भिन्न-भिन्न जातीयता -बोली
कई धर्मों का देश, संप्रदायों की टोली
१,६३५ भाषाएं और ९०० हैं बोली
१११ नृत्य रूप -संगीत ,रस व्यंजन
उत्सव,वास्तुकला में जग में कोई न सानी
राम -कृष्ण की भूमि ,वीर महापुरुषों ने जन्म लिया है
दुनिया को शून्य, दशमलव भारत ने ही दिया है।
दुनिया में सबसे बड़ा लोकतंत्र यही हुआ है
लिखित संविधान भी इसी धरा पर रचित हुआ है
अति उन्नत,प्राचीन सभ्यता
सागर इसके रत्नों की खान
खेत उपजाते धन -धान्य
नदियां सिंचित करती भूमि
नहीं रहती कहीं कोई कमी
कण-कण में है इसके सहिष्णुता और सद्भाव
रुप-रंग, जाति -धर्म का नहीं कोई दुर्भाव
10,000 वर्षों में हमला कभी न बोला
हर संस्कृति का सम्मान किया कभी न कमतर तौला
विश्वगुरू बन विश्व को राह दिखाई
वसुधैव कुटुंबकम् की नीति चलाई
जीव-रक्षा, अग्नि,वायु,जल, पेड़-पाहन पूजा
खुद जीयो औरों को भी जीने दो ,समान मंत्र नहीं दूजा।

गीता परिहार
अयोध्या

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शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 3 years ago

बिलकुल, हमें गर्व होना चाहिए

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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प्रपोजल
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माँ
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