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एक करवट की दूरी - Lawlesh Verma (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

एक करवट की दूरी

  • 156
  • 2 Min Read

मज़बूरियों का साया ओढ़
जो निकले थे,
सब छोड़ कर
कुहों की गूँजे अब भी
रह रह कर कुंजती होगी ना।

तुमने भी तो सुना होगा ना,
हम जब मिले थे,
आखिरी बार,
काश!
अपनी साँसों के मशवीरे में
हम भी शरीक़ हो गए होते
कितने क़रीब थे हम,
तुमने भी सुना होगा ना।

तुम्हारे बगैर
एक करवट की दूरी को काटने में
कितना वक्त लग सकता है,
की हर एक सुबह थक कर सो जाता हूँ।
गोली एक नींद की तुम्हें भी निगलनी पड़ती है ना।

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Rajesh Kr. verma Mridul

Rajesh Kr. verma Mridul 3 years ago

उम्दा प्रस्तुति।

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत सुंदर रचना

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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प्रपोजल
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माँ
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