कविताअतुकांत कविता
पेड़ो को
लताओं को
झुरमुट में खिलते फूलों को
इनसे उपजी हरियाली को
धरा पर बिखरी खूबसूरती को
मुझसे न छीनों
हो जाऊँगी निष्प्राण मैं
मत रोकों बहती हवाओं को
है मुझमें माँ सी ममता और प्यार पिता सा
मर्मस्पर्शी भाव ,दया और परोपकार भी
होता मुझे भी दुख-दर्द है
मत चलाओ मेरे गहन पर तेज धारी वाली आरी
जो चली गई एक बार हरियाली मेरे आँचल से
हो जाएगा मुखमंडल मेरा स्याह
लाख जतन करके भी नहीं खिल सकेंगे फूल यहाँ
होगी बेरंग और लाल पत्थर की दुनिया
मिट जाएगा अस्तित्व मेरा भी और तेरा भी ।