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अस्तित्व - सोभित ठाकरे (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

अस्तित्व

  • 192
  • 3 Min Read

पेड़ो को
लताओं को
झुरमुट में खिलते फूलों को
इनसे उपजी हरियाली को
धरा पर बिखरी खूबसूरती को
मुझसे न छीनों
हो जाऊँगी निष्प्राण मैं
मत रोकों बहती हवाओं को
है मुझमें माँ सी ममता और प्यार पिता सा
मर्मस्पर्शी भाव ,दया और परोपकार भी
होता मुझे भी दुख-दर्द है
मत चलाओ मेरे गहन पर तेज धारी वाली आरी
जो चली गई एक बार हरियाली मेरे आँचल से
हो जाएगा मुखमंडल मेरा स्याह
लाख जतन करके भी नहीं खिल सकेंगे फूल यहाँ
होगी बेरंग और लाल पत्थर की दुनिया
मिट जाएगा अस्तित्व मेरा भी और तेरा भी ।

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 4 years ago

बहुत सुंदर रचना

सोभित ठाकरे4 years ago

धन्यवाद जी

Naresh Gurjar

Naresh Gurjar 4 years ago

लाजावाब

सोभित ठाकरे4 years ago

धन्यवाद जी

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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प्रपोजल
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माँ
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चालाकचतुर बावलागेला आदमी
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