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सावन की सौगात - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

सावन की सौगात

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  • 5 Min Read

# सा-रे-ग-म-प (अधूरी कहानी भाग1) १-१५,2,21 फरवरी प्रतियोगिता
*सावन की सौगात*

ये बूंदे सावन की आज बरसी
के दिल के अरमाँ मचल रहे हैं

मौन तुम्हारा चाहे रहा हो
शब्द लबों में समा गए हो
नयनों की भाषा ने बयाँ किया है।
ये बूंदे,,,
आते जाते मिलते रहे हो
मैंने न जाना,तूने न जाना
पहचान रूहानी होती रही है
ये बूंदे,,,,
नशीली आँखे झील जैसी
रेशमी केस जमीं को छूते
के मोती सी बूंदे ये टपक रही है
ये बूंदे,,,
अधूरी ये इक प्रेम कहानी
दो दिलों ने दिल में जानी
के सावन में सुहानी बेला है आई
ये बूंदे,,,,
मिलन की बेला बूंदे लाई
मैं और तुम, हम हो जाएं
के फ़रिश्ता मानो मिल गया है
ये बूंदे,,,,
ख्वाबों में मिले सनम हम
शिकवे भी सब भूल जाएं
के हसरतें हमारी लहक रही हैं
ये बूंदे,,,
छोड़ो शरम क़रीब आओ
श्वासों से एहसास कराओ
के काले बदरा घुमड़ रहे हैं
ये बूंदे
आज हमें ये लम्हें मिले हैं
तारे ये देखो सुनने लगे हैं
के चाँद भी देखो उतर रहा है
ये बूंदे,,,
सिहरते लब कह ना पाए
इक दूजे में हम खो जाएँ
के छोटू की चाय हमें बुला रही है।
ये बूंदे,,,
सरला मेहता

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Ashutosh Tripathi

Ashutosh Tripathi 3 years ago

बहुत सुंदर रचना 👌🏻👌🏻👏🏻👏🏻👍🏻

Naresh Gurjar

Naresh Gurjar 3 years ago

बहुत खूब

शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 3 years ago

बहुत सुंदर

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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माँ
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