कविताअतुकांत कविता
प्यार का मर्म
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प्यार जाना है मैंने ये कैसे कहूँ |
प्यार का कायदा न अबतक आया मुझे |
ऐसा नहीं कि मैंने की वेवफाई
पर वादा निभाना न आया मुझे |
वे वादे भी करते हैं ,कसमें भी खाते हैं |
प्यार जताने को तोहफे भी लाते हैं
हम अबतक बने रहे इससे अंजान
कुछ रस्में निभाना न आया मुझे |
चुप रहना ही बेहतर मुझे जो लगा
दिल की बात करना न अबतक आया मुझे
सुने तो कई धुन मैंने भी जिंदगी में
अपनी धुन बजाना न आया मुझे |
तारीफ तो मैंने की है प्यार में
पर इसके पुल बाँधना न आया मुझे
फूल खिले थे जो बागों में ,उन्हें दे दिया
उन्हें जुड़े में सजाना न आया मुझे |
कैसे हँसते हैं वे ठहाके लगाकर
खुश होते हैं वे पटाखे जलाकर
फूलझड़ियों को भी मैंने देखा खिलखिलाते
प्यार में मुस्कुराना न आया हमें |
दुनियाँ ने सिखाया बहुत कुछ जिंदगी में
प्यार क्या अबतक किसी ने न बताया मुझे |
किताबों में लिखा है कर्म की महिमा
प्यार का मर्म न अबतक किसी ने समझाया मुझे |
कृष्ण तवक्या सिंह
17.02.2021