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# ऑन लाइन इश्क़ 10 से 14 फरवरी
प्रतियोगिता
*ऑन लाइन इश्क़*
सुना था इश्क़ या प्यार कैसे भी कहीं भी हो जाता है,,,तू पास रहे या दूर रहे,नज़रों में समाए रहते हो। क्या क्या अफ़साने हैं, इस प्यार के।और कभी इश्क़ विष्क, प्यार व्यार मैं क्या जानू रे,,,तुझे अपना मानू रे। सच ही है, रूहानी प्यार ऐसा ही होता है। देह से परे दिल से दिल को राह होती है। और कई दीवाने तो ऐसे होते हैं,,,तुम प्यार करो या ठुकराओ हम तो हैं तेरे दीवानों में। और कुछ कुछ होता है वाला अल्हड़ इश्क़ भी होता है।
आज की इस आभासी दुनिया में स्मार्ट फोन के ज़माने में ऑन लाइन इश्क़ का क्या कहूँ ? फेसबुक की मित्रता कब प्यार का रूप ले लें, कहा नहीं जा सकता। हाँ, अक्सर रिश्ता पक्का होने के पूर्व भी अभिभावक बच्चों को स्वयं ही इजाज़त देते हैं कि परस्पर चर्चा कर एक दूसरे को समझे। किन्तु यह भी देखने में आया है कि लड़का लड़की बिना रुबरू मिले ऑनलाइन ही इश्क़ कर बैठते हैं। यह धूल में लठ लगने वाली बात है। कई बार गफ़लत में धोख़ा सम्भव है। झूठी अनर्गल जानकारियां दोनों पक्षों से हो सकती है। ठग दूल्हे व लुटेरी दुल्हन के कई किस्से ,सुनते हैं।
अतः जहाँ तक मेरा अभिमत, है मैं इस तरह की इश्कबाज़ी के पक्ष में नहीं हूँ। धोखे से लेकर हत्या तक बात पहुँच जाती है। लड़की की ज़िंदगी दुश्वार हो जाती है। धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का। पूरे परिवार को खामियाजा भुगतना पड़ता है। लड़का भी बेचारा तनाव में कुछ भी कदम उठा सकता है।
परिवार की सहमति से जो रिश्ते तय होते हैं, वर व वधु का पूरा इतिहास निकाला जाता है। ऐसे में धोखे की संभावना कम रहती है।
यूँ भी आज की स्वच्छंद पीढ़ी "तू नहीं और सही" की तर्ज़ पर चलने लगी हैं। भावनाओं का स्थान वाह्य चकाचौंध ने ले लिया है। लैला मजनू, शीरी फ़रियाद आदि सा मर मिटने वाला इश्क़,, मज़ाक़ या कहानी की बात रह गया है।
यह नहीं कि ऑनलाइन इश्क़ पूरी तरह असफ़ल होता है। कई अच्छे रिश्ते भी बन जाते हैं। ऐसा प्यार होने पर ज़मीनी तौर पर छानबीन करना चाहिए। चट मंगनी पट ब्याह नहीं।
सरला मेहता