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निंदक नियरे राखिए - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

निंदक नियरे राखिए

  • 213
  • 4 Min Read

निंदक नियरे राखिए
जहां हर कोई प्रशंसा का भूखा है
सच्ची / झूठी प्रशंसा का भूखा है
कान तरसते हैं प्रशंसा सुनने के लिए
प्रशंसक,चमचे,चाटुकार अहंकार को देते हवा
फिर लाख कहो, प्रशंसा से सावधान
प्रशंसा से हित नहीं, अहित है भाई
बात यह किसको रास है आई?
कबीर कह गए, निंदक नियरे राखिए
ओशो कह गए ,निंदक की बात ध्यान से सुनो
निंदक आपका आईना है।
किंतु भाती सबको प्रशंसा
कुरुप सुंदर सुनकर खुश होता
बुजुर्ग जवान कहलाकर इठलाता
झूठ का सच पर पलड़ा भारी
झूठ ने हर ली मति जब सारी
अहंकार और झूठ का गठजोड़
सह न पाए हितेषी निंदक के बोल
शब्दों को जो छल से बोले लगता वह सुखकारी
निंदक समीप देख कहते,"निंदा बड़ी बिमारी।

गीता परिहार
अयोध्या

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Champa Yadav

Champa Yadav 3 years ago

सुन्दर....

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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प्रपोजल
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माँ
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