Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
"आनलाइन इश्क" - Bandana Singh (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

"आनलाइन इश्क"

  • 226
  • 3 Min Read

बड़ी बेमुरव्वत जिन्दगी हो गयी है
दिन काली रातें हसीन हो गयी है।

तेरे इश्क का सर नशा चढ़ गया है
जो भी सामने है ,वो आया गया है।

नावाकिफ मैं खुद के जिम्मेदारीयों से
बसन्त में भी सुखा ये चेहरा नया है।

लजीज़ कोई खाना अब लगता नही है
तेरे जैसा शख्स कोई दीखता नही है।

मैं मारा हूं अपने ही दिल की जलन से
जले जा रहा हूँ प्रेम की अगन से।

जब से तेरा चेहरा मोबाइल पर देखा
सारी रात गीत का किया लेखा जोखा।

अब आखों पर चश्मा इश्क का चढ़ है
कुछ मिलता नही बस नंबर बढ़ा है।

आन-लाइन इश्क ने निकम्मा किया है
न खाने का सुध जीना भी छोड़ दिया है।

20210211_002344_1612984483.jpg
user-image
Bandana Singh

Bandana Singh 3 years ago

क्या मैने अपडेट करके प्रयास किया। क्या अब प्रतियोगिता में ऐड है ।कृपया बताएं। मेरी कविता संवेदना भी प्रतियोगिता में शामिल नही हो पायी मैने ऑप्शन क्लिक किया था ।

नेहा शर्मा3 years ago

जी अब ऐड हो गयी है।

प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
1663935559293_1726911932.jpg
ये ज़िन्दगी के रेले
1663935559293_1726912622.jpg