कवितालयबद्ध कविता
बड़ी बेमुरव्वत जिन्दगी हो गयी है
दिन काली रातें हसीन हो गयी है।
तेरे इश्क का सर नशा चढ़ गया है
जो भी सामने है ,वो आया गया है।
नावाकिफ मैं खुद के जिम्मेदारीयों से
बसन्त में भी सुखा ये चेहरा नया है।
लजीज़ कोई खाना अब लगता नही है
तेरे जैसा शख्स कोई दीखता नही है।
मैं मारा हूं अपने ही दिल की जलन से
जले जा रहा हूँ प्रेम की अगन से।
जब से तेरा चेहरा मोबाइल पर देखा
सारी रात गीत का किया लेखा जोखा।
अब आखों पर चश्मा इश्क का चढ़ है
कुछ मिलता नही बस नंबर बढ़ा है।
आन-लाइन इश्क ने निकम्मा किया है
न खाने का सुध जीना भी छोड़ दिया है।
क्या मैने अपडेट करके प्रयास किया। क्या अब प्रतियोगिता में ऐड है ।कृपया बताएं। मेरी कविता संवेदना भी प्रतियोगिता में शामिल नही हो पायी मैने ऑप्शन क्लिक किया था ।
जी अब ऐड हो गयी है।