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आया बसंत झूम के - Maniben Dwivedi (Sahitya Arpan)

कवितागीत

आया बसंत झूम के

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  • 5 Min Read

आया।बसंत जग हर्षाए।
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खड़ी है गोरी आस लगाए कर सोलह श्रृंगार।
नवल बृंद पर खिले हैं अद्भुत किसलय नवल बहार।

पीत चुनरिया ओढ़ धरा दुल्हन बन कर हर्षाए।
प्रकृति कुदरत का फ़िर उपहार लिए घर आई।

कुहू कुहू गावे कोयलिया छेड़ी गीत विरह के।
सरसो डोले अपने मद में मन्द बहे पुरवाई ।

बैठी गोरी सोचे मनवा कैसे धीर धरूं मैं।
मन व्याकुल तरसे दोऊ नैना कैसे पीर हरू मैं।

दिवस रैन सब बैरन हो गए नींद भई बैरनिया।
पिया बिना नहीं लागे जीयरा सेजिया लगे नगीनिया।

मौसम ने ली अंगड़ाई आया सुख ऋतु बसंत।
छलक रहे है कोर नयन के, आए ना मेरे कंत।

फूल उठी सरसों खेतों में झूमे गेहूं की बाली।
मस्त बहे मादक पुरवाई, चहुं दिस है हरियाली।

आवारा भौरों ने गुनगुन छेड़ दिया है तान।
कोयलिया ने मधुर स्वरों में गाई है मधु गान।

अद्भुत शोभा छाई जग में रौनक खिली बहार।
प्रकृति संग ले कर आई कुदरत का उपहार।।

मणि बेन द्विवेदी
वाराणसी उत्तर प्रदेश

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Rajeev Kapil

Rajeev Kapil 3 years ago

वाह वाह

Seeta Tiwari

Seeta Tiwari 3 years ago

बहुत खूब लिखा है शब्द भंडार देखने लायक है

Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

मैम आप अपनी रचना को प्रतियोगिता में एड कर लें

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